नोटबंदीचे अभंग
एटीयमचिये द्वारी। उभा क्षणभरी।
तेणे पाचशेच्या चारी। मिळतीया।।
कार्ड चार हाती। स्लॉटमधे घासी।
निकडीची रोकड मग। निघतीया।।
रांगेत बहु जन। स्वतःचेच धन।
घामेजलेले तन। ताटकळ्या।।
ब्यांकेतही तेच। होई खेचाखेच।
शिव्या कचाकच। निघतीया।।
ऐसे शूराभिमानी। न देखिले कोणी।
तयांसी देशाभिमानी। म्हणतीया।।
एकच दिला धक्का। गुर्जर तो पक्का।
'मित्रों' ऐसी हाक। मारतोया।।
सुका म्हणे बास। किती रोखावे श्वास।
काय ३१ डिसेंबरास। करतोया???
- भारी समर्थ!