या पाखरांस आता--- |
पुष्कराज |
2 |
प्रेमदिनाची पूर्वसंध्या |
जयवी |
11 |
-गणेश स्तवन- |
अनिरुद्धशेटे |
2 |
कशी येशील कोंदणी??...(व्हॅलेंटाईन डे स्पेशल) |
चतुरंग |
24 |
दुधवाच्या जंगलात मी एक जिवंत वाघ पाहिला |
माझी दुनिया |
9 |
अमृतराय झोपडीत का गेला? |
चतुरंग |
19 |
कधी रे येशील तू... अनामिका.... |
मृगनयनी |
9 |
सजनासाठी... |
अंकुश चव्हाण |
0 |
सुख पुढे वाटे.... |
संध्यानंदन |
0 |
असा ही एक भावानुवाद "हो ना गं आई" |
श्रीकृष्ण सामंत |
13 |
(गंधांच्या उलाढाली) |
चतुरंग |
2 |
अटी शर्थी लागु |
सुचेता |
5 |
एक वेडी आशा |
ज्ञानदा कुलकर्णी |
2 |
मी बोचले म्हणालो |
केशवसुमार |
5 |
कधी असे ... |
मनीषा |
10 |
कोणास ठाऊक कसा पण्...विडंबनात उतरला पिडा... |
शितल |
7 |
अ |
पुष्कराज |
0 |
तुझे सब है पता... चा भावानुवाद |
आचरट कार्टा |
10 |
<म्हणजे...> |
पिवळा डांबिस |
24 |
रासलीला |
पुष्कराज |
3 |
बाम |
केशवसुमार |
6 |
प्रवाह..आणि उत्तर |
प्राजु |
39 |
पण तू मात्र - 2 |
sanjubaba |
6 |
<प्रवाह....आणि उत्तर> |
पिवळा डांबिस |
10 |
((प्रवाह..आणि उत्तर)) |
चतुरंग |
18 |
(चिकट सकाळ) |
बिपिन कार्यकर्ते |
24 |
बिकट सकाळ |
केशवसुमार |
9 |
सोबतीला पाव आहे |
केशवसुमार |
18 |
आलो शरण तुला... |
अंकुश चव्हाण |
1 |
म्हणजे-२ |
केशवसुमार |
13 |
कवनासाठी कोण बरे विहंगाचा कवी |
श्रीकृष्ण सामंत |
5 |
(फुकट सकाळ) |
बेसनलाडू |
9 |
लावणी-प्रणयरातीला कुठ चालला |
पुष्कराज |
0 |
(म्हणजे) |
बेसनलाडू |
7 |
संक्रांतीच्या अनेक शुभेच्छा...! |
घाशीराम कोतवाल १.२ |
2 |
तू यावेस |
trendi.pravin |
0 |
स्वप्नपरी |
पुष्कराज |
1 |
तुला पिताना पाहिलं की....... |
परिकथेतील राजकुमार |
9 |
साद |
सुचेता |
8 |
आठवण |
शर्मीला |
3 |
हुंडाबळी |
शर्मीला |
0 |
स्वप्न एखादे जणू... |
मिल्या |
6 |
बकूळ फूले |
मानसी मनोजजोशी |
8 |
Seezens (seasons) |
चतुरंग |
35 |
तू |
प्रेरणा |
1 |
कळले मला ना........ |
मानसी मनोजजोशी |
2 |
प्रियेच्या भेटी--- |
पुष्कराज |
2 |
तुला हसताना पाहिलं की....... |
अनंतसागर |
0 |
मन कसे वेडे-पिसे |
पल्लवी |
21 |
गुलाबाचे काटे |
पुष्कराज |
1 |
ही तशी माझीच आहे गोष्ट पण... |
घाटावरचे भट |
14 |
'सत्य म'ला उमगले! |
समीरसूर |
19 |
आताही प्रेम तसेच आहे का? |
धनंजय |
26 |
तू |
सचिन |
1 |
मृगजळ |
सचिन |
1 |
(ही 'तिची' माझीच आहे गोष्ट अन...) |
चतुरंग |
8 |
लाजवंती |
संदीप चित्रे |
7 |
हे तसे माझेच आहे काव्य पण.. |
केशवसुमार |
7 |
एकमन |
सुचेता |
1 |
ही तुझी माझीच आहे गोष्ट पण... |
अनिरुद्ध अभ्यंकर |
14 |
चारोळ्या |
मानसी मनोजजोशी |
1 |
इच्छिला उषःकाल अंधःकार मिळाला |
श्रीकृष्ण सामंत |
2 |
चारोळ्या |
मानसी मनोजजोशी |
13 |
जय जय भारत ! जय जय भारत ! |
आचरट कार्टा |
4 |
गुलबचा सण |
पुष्कराज |
6 |
संतश्रेष्ठ (देवद्वार छंद) |
संदीप चित्रे |
13 |
किती मैत्रिणी? ताटावरती ... |
केशवसुमार |
13 |
भारत माझा एक रॆ |
राजा |
2 |
भयस्वप्न |
धनंजय |
6 |
दिवा तेवतसे अंधारात... (देवद्वार छंद) [माझं इथलं पहिलंच पोस्ट :) ] |
आचरट कार्टा |
3 |