बात हुई ही नही
पिछली चांद की रात तो बरसी बहुत
हम फिरभी अपनी तिश्नगी साथ लिये लौटे
अजीब है ये वाक़या, मगर
बात हुई ही नही
दूर उफ़क की लकीर सुर्ख हो चली थी
उनके आमद की खबर गर्म हो चली थी
सुनते है वो आये तो थे
कायनात पे छाये तो थे
हम न जाने किस चांद की
याद मे मसरूफ़ थे के
बात हुई ही नही
जो बात रात रात भर बारीशे करते है
इस जमी से
शायद आसमा के पैगाम हो
इस जमी के नाम जैसे
ऐसे ही वो बात जो हमे
उनसे करनी थी
रातें गुजरी
मगर बात हुई ही नही