पावसाची परी |
विजुभाऊ |
6 |
TAROT भविष्याची चाहुल घेणे |
अमोल केळकर |
11 |
कवितेच्या झाडावर... |
अशोक गोडबोले |
7 |
सारखे शिंकीत जाशी ... |
केशवसुमार |
10 |
पावसा! |
ऋषिकेश |
13 |
अशी गुमसुम आवडतेस मला |
धनंजय |
10 |
मरण मला पाहून हंसले |
श्रीकृष्ण सामंत |
0 |
आयुष्यावर प्रेम करावे-- |
पुष्कराज |
7 |
सोने |
सुवर्णमयी |
7 |
विवाहाची पद्यातली आमंत्रण पत्रिका |
उदय सप्रे |
1 |
ही केशरी संध्याकाळ |
श्रीकृष्ण सामंत |
4 |
पाहिले मी ! |
कौस्तुभ |
11 |
गणेशस्तोत्र (संस्कृत रचना) |
अशोक गोडबोले |
12 |
द्विधा मनाचि |
namdev narkar |
0 |
मामाच्या गावाला |
अरुण मनोहर |
16 |
पारिजात |
मृत्युन्जय |
3 |
kai aahe tuzya manat........???? |
स्नेहश्री |
0 |
कुणास ठाऊक..? |
स्नेहश्री |
4 |
विराणी |
यशोधरा |
12 |
घेतली मिठीत आम्ही--- |
पुष्कराज |
6 |
सांभाळा हो! मला कुणीतरी |
श्रीकृष्ण सामंत |
2 |
( जाता दुरदेशी सुख वाटे जीवा -) |
अमोल केळकर |
8 |
पोचलो का आपण? |
धनंजय |
22 |
मोनालीसा |
कौस्तुभ |
6 |
(छंदात छंद तो प्रवासछंद --) |
अमोल केळकर |
0 |
(...मी खरा की तू खरा?) |
चतुरंग |
4 |
उद्वेग विसरून कसं चालेल? |
श्रीकृष्ण सामंत |
0 |
(आता कशाला उड्याची बात!) |
चतुरंग |
12 |
रासलीला |
पुष्कराज |
10 |
भुंगा |
आनंदयात्री |
27 |
तुझ्या घरासमोरचा रस्ता... |
अविनाश ओगले |
24 |
पडक्या घरास माझ्या |
suralesandip |
2 |
खुषी न मिळता मिळते रुसणे |
श्रीकृष्ण सामंत |
2 |
आता कशाला उद्दयाची बात |
श्रीकृष्ण सामंत |
9 |
खणले रे पथ |
हेरंब |
6 |
चिंब पावसात तू न्हात असशील... |
फटू |
6 |
दोष होता केला मी तो चुकून |
श्रीकृष्ण सामंत |
4 |
लावणी - प्रणयरातीला कुठे चालला |
पुष्कराज |
11 |
परतुनी येईन मी.... |
अजिंक्य |
1 |
नको म्हणू रे मनुजा! |
श्रीकृष्ण सामंत |
4 |
लळा जिव्हाळा शब्दच मोठे |
श्रीकृष्ण सामंत |
0 |
तारीफ करू का त्याची |
श्रीकृष्ण सामंत |
7 |
उघड्या खांद्यावरती सखये-- |
पुष्कराज |
12 |
तत्व माझे सोडणार नाही |
श्रीकृष्ण सामंत |
5 |
अळकुळी तनु |
श्रीकृष्ण सामंत |
0 |
संता आणी बंता |
अमोल केळकर |
1 |
जखम मनाची ताजी असता |
श्रीकृष्ण सामंत |
2 |
तुझी याद.. |
पद्मश्री चित्रे |
7 |
तो आणि त्याचा 'मी' |
काळा_पहाड |
3 |
धमुचे केळवण (जेव्हा पुरी नि भाजी - ) |
अमोल केळकर |
2 |
लग्नाआधी नि लग्नानंतर ! |
संदीप चित्रे |
3 |
काय करावे कळत नव्हते |
कौस्तुभ |
6 |
(सख्या रे, घामट मी तरुणी!) |
चतुरंग |
14 |
सुखाचा शोध |
काळा_पहाड |
3 |
परि तुज सम आहेस तूच |
श्रीकृष्ण सामंत |
10 |
शादी से पहले और शादी के बाद ! |
संदीप चित्रे |
8 |
अरे संस्कार,संस्कार |
श्रीकृष्ण सामंत |
7 |
जिवलगा... |
फटू |
3 |
(दिवस असे हे ढकलायचे __) |
अमोल केळकर |
5 |
तुला समजलो, आणि समजली तुझी स्वच्छता |
केशवसुमार |
6 |
कालची गळाली फुले रे |
कौस्तुभ |
10 |
म्हणून म्हणतो नका घालूं वाद |
श्रीकृष्ण सामंत |
6 |
उद्धवा! अजब तुझे सरकार |
श्रीकृष्ण सामंत |
0 |
कालाय तस्मै नम: |
श्रीकृष्ण सामंत |
13 |
उदारीकरण |
काळा_पहाड |
9 |
शब्दहो, याना जरा...! |
केशवसुमार |
10 |
'टाळी'बाज |
केशवसुमार |
6 |
गुलाबी थंडी |
चाणक्य |
7 |
दुसरी बाजू ऐकली पाहिजे |
श्रीकृष्ण सामंत |
0 |
या पाखरांस आता --- |
पुष्कराज |
8 |