शादी से पहले हाथों में हाथ
लबों पर भी खूब मिठास
घंटोंतक चलें फोन पे बात
हर शाम उन्हें मिलने के बाद
अंबर का हो रंग नीला
या फिर हो घनघोर वर्षा
इक छोटा, कप कॉफी का
साथ देता दिवानों का…
शादी होते सबकुछ बदला
उनका न सिर्फ नाम बदला
घर आते हैं साँझ ढले हम
लिए हाथ सब्जी का थैला…
बातें अब भी होती हैं
घटोंतक वे चलती हैं
घरखर्चा और बच्चोंकी फीस
क्या जेब में अब कुछ बाकी है?
ऐसा नहीं के प्यार हुआ कम
फुरसद अब कहनेकी नहीं
बात अगर हो नजरोंसे तो
जरूरत अब लबोंकी नहीं.. !!!
--------------------------------
http://www.atakmatak.blogspot.com
--------------------------------
प्रतिक्रिया
25 Jun 2008 - 2:36 am | मिसळपाव
विशेषतः नेहेमीसारखं 'लग्न झाल्यानंतरच्या वनवासाचं' चित्र नाही रंगवलंय ! शेवटचं कडवं तर केवळ लाजवाब.
चित्रेसाहेब, काय मस्त बाजार मिळाल्यावर, बोंबील वगैरे चापल्यावर चिंतन करताना सुचली का काय? :-)
25 Jun 2008 - 3:04 am | भडकमकर मास्तर
अगदी पठडीतली असं वाटत असतानाच शेवटचे कडवे झकास..
शेवटच्या ओळी कवितेला अजून उंचीवर घेऊन जातात...
:) :)
______________________________
ही आमची अनुदिनी ... http://bhadkamkar.blogspot.com/
25 Jun 2008 - 3:45 am | शितल
मस्त कविता
खर्॑च असेच होत असते ना सगळ्या॑चे लग्न झाल्यावर स॑साराला लागल्यावर
घर की मुर्गी डाल बराबर.:)
25 Jun 2008 - 9:04 am | अरुण मनोहर
छान वर्णन आहे बदलाचे. थोडे थांबा
बात अगर हो नजरोंसे तो
जरूरत अब लबोंकी नहीं.. !!!
चे काळानंतर कदाचित असे व्हायचे.... (ह.घ्या.) : :))
बात अक्सर होती घुसोंसे
नजाकत अब नजरोंकी नहीं.. :''( :''(
25 Jun 2008 - 9:56 am | चाणक्य
क्या बात है..!
25 Jun 2008 - 10:02 am | ऋचा
ऐसा नहीं के प्यार हुआ कम
फुरसद अब कहनेकी नहीं
बात अगर हो नजरोंसे तो
जरूरत अब लबोंकी नहीं.. !!!
मस्तच!!!
"No matter how hard the life crashes;Like a Phoenix I will rise from my Ashes"
25 Jun 2008 - 11:32 am | विसोबा खेचर
संदीपशेठ,
कविता छानच आहे परंतु हे मराठी संस्थळ आहे याचे भान असू द्या.... :)
तात्या.
26 Jun 2008 - 12:51 am | संदीप चित्रे
आज लगेच मराठी अनुवाद केलाय ... लगेच टाकतो :)
-------
सर्व मंडळींना प्रतिक्रियांसाठी धन्स !