..आयुष्याला मी सौख्याचा बाजार म्हणालो.. |
कानडाऊ योगेशु |
17 |
उन्हाळ्यातले थेंब (हायकू) |
धनंजय |
32 |
देव गाभाऱ्याबाहेर निघाला! |
DEADPOOL |
30 |
(किती लौकर आज उजाडलं बाई)............निकोलोडिऑन व्हर्शन |
अभ्या.. |
32 |
भूतकाळ सुरु होतो... |
|
1 |
मार्कर |
ए ए वाघमारे |
3 |
..तुझे टाळतो मी अताशा शहर.. |
कानडाऊ योगेशु |
5 |
गझल :- जंगलातले नियम इथे लावायचे |
स्वामी संकेतानंद |
6 |
हमारी... अधुरी...... नव्वदोत्तरी.............................. |
मारवा |
5 |
सुंदरी काय आहे तुझ्या मनांत? |
अविनाशकुलकर्णी |
6 |
वात्रटिका - झिंगाट प्रेम |
विवेकपटाईत |
1 |
"व्वा…क्या बात है…!" |
अश्विनी वैद्य |
2 |
पावसामधल भंकस इंद्रधनुष्य |
सुशेगाद |
3 |
(या क्वार्टरवेळी) |
चतुरंग |
20 |
निशाण |
म्हसोबा |
2 |
विस्तारभयास्तव |
स्वामी संकेतानंद |
16 |
व्हिडीओ शूट |
चाणक्य |
8 |
मायीवाली ग्लोबल कविता |
स्वामी संकेतानंद |
24 |
समुद्र |
विश्वेश |
5 |
बारा अमावास्यांचे अंधार |
पालीचा खंडोबा १ |
8 |
हिरवीन |
चांदणे संदीप |
28 |
जेव्हा माझ्या कर्जांना (एका बँकरचे गार्हाणे) - विडंबन |
मंदार दिलीप जोशी |
12 |
जीवनाच्या डावपेचांची नसे पत्रास आता .... |
विशाल कुलकर्णी |
2 |
निषेध! |
जव्हेरगंज |
16 |
....तेव्हा तू मला फार फार आवडतेस....प्रवास ५ |
कानडाऊ योगेशु |
18 |
गेले मोदी कुणीकडे |
anilchembur |
22 |
तर्राट झालं जी... |
सायकलस्वार |
14 |
....थांबले ट्राफीक आता... |
कानडाऊ योगेशु |
3 |
वेदनेचा गाव |
रातराणी |
24 |
निषेध! |
जव्हेरगंज |
0 |
निषेध! |
जव्हेरगंज |
0 |
चालवायचंच म्हटलं तर... |
जव्हेरगंज |
5 |
जीव नांगरटीला आलाय |
जव्हेरगंज |
36 |
..तेव्हा मला तू फार फार आवडतेस..प्रवास ४ |
कानडाऊ योगेशु |
20 |
<मी टाकलेल्या एकूण (धागा)पिंका> |
नाखु |
9 |
फक्त तुझ्यामुळेच |
bond |
3 |
..किती लौकरच आज उजाडलं बाई.. |
कानडाऊ योगेशु |
11 |
इतक्या सहज नसतं शक्य... |
वटवट |
4 |
..कोणी कसाब झाले,कोणी कलाम झाले.. |
कानडाऊ योगेशु |
15 |
<<<माजबुरी है>>> |
नाखु |
9 |
< < < मजबूरी है > > > |
रातराणी |
10 |
< < मजबुरी है > > |
ज्ञानोबाचे पैजार |
39 |
अनुवादः तू भेटतेस अशी. मूळ कविता: जरूरी है |
मिसळलेला काव्यप्रेमी |
38 |
....विश्वाची उलगड होते..... |
कानडाऊ योगेशु |
12 |
मोबदला |
पथिक |
3 |
बायको कोण असते... |
निओ |
4 |
..विचारेन त्यालाच कॉफी चहा.. |
कानडाऊ योगेशु |
8 |
< < < < मजबूरी हय > > > > |
चांदणे संदीप |
11 |
तेव्हा मला तू फार फार आवडतेस...! |
कानडाऊ योगेशु |
84 |
एक पावसाळी कविता |
पथिक |
15 |
नंगा नाचेन मी एक दिवस |
पथिक |
56 |
माझा गाव |
निलम बुचडे |
9 |
पहायचं होत ग तुला एक नजर...!!! |
kunal lade |
0 |
..तुला पाहण्याचा मला छंद राणी.. |
कानडाऊ योगेशु |
11 |
आखाजीचा सण |
पाषाणभेद |
13 |
तेव्हा मला तू फार फार आवडतेस - प्रवास ३ |
कानडाऊ योगेशु |
16 |
आधी सोसायचे ,मग हासायचे |
पथिक |
2 |
माय |
ऊध्दव गावंडे |
8 |
समरस व्हावे ऐसे |
चांदणे संदीप |
7 |
एकट्याने रात हि पेलावी कशी |
पथिक |
23 |
गाव बदललाय! |
निशांत_खाडे |
12 |
..वॉन्टेड.. |
कानडाऊ योगेशु |
15 |
(इच्छा अधूरी..) |
नीलमोहर |
10 |
HOW ARE YOU? |
जव्हेरगंज |
27 |
पहाट बोले … |
उल्का |
4 |
तेव्हा मला तू फार म्हणजे फार आवडतोस |
ज्ञानोबाचे पैजार |
23 |
नाडलेल्या लोकांची कहाणी ............. |
माम्लेदारचा पन्खा |
24 |
असा कसा काळ आला |
gsjendra |
3 |
कस सांगु ??? |
एक एकटा एकटाच |
8 |
बीज |
gsjendra |
9 |