गंधभारल्या रात्री होत्या... |
सत्यजित... |
16 |
वादळ उगा निमाले.. |
राघव |
8 |
(ही पहा पाडली गजल) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
16 |
'आयटी'तल्या मोरूची कवने |
मूकवाचक |
21 |
अभिमन्यु तुझा |
दिनु गवळी |
4 |
छन्दोरचना |
माहितगार |
8 |
(दे कुटाणे सोडुनी...) |
खेडूत |
10 |
( ते पहा पब्लिक हसंल ) |
माम्लेदारचा पन्खा |
8 |
शब्द. .. |
अत्रुप्त आत्मा |
13 |
(ती पहा पडली गझल) |
वेल्लाभट |
7 |
(ती पहा पडली गझल) |
सूड |
15 |
प्रेमाचं गणित |
अॅस्ट्रोनाट विनय |
5 |
कसे या मनाला कसे जोजवावे? |
सत्यजित... |
4 |
काळाचे गीत |
चांदणे संदीप |
4 |
माय |
Dr prajakta joshi |
2 |
धुंद पाऊस |
चांदणशेला |
4 |
चांदण्याला चांदणे समजू नये |
drsunilahirrao |
21 |
आता तुझ्यावर लिहायचं म्हटलं... |
वटवट |
21 |
खुळ्या सांजवेळा... |
प्राजु |
21 |
ख्रिस्त |
अरूण गंगाधर कोर्डे |
0 |
मी.... |
ओ |
0 |
कोसला |
संदीप-लेले |
3 |
तो खुला बाजार होता! |
सत्यजित... |
16 |
दगड! |
वेल्लाभट |
33 |
भटकत होतो |
जव्हेरगंज |
1 |
'नाते' म्हणून आहे! |
सत्यजित... |
19 |
तडा गेलाच आहे तर... |
सत्यजित... |
16 |
ती एकदाच दिसली... |
सत्यजित... |
14 |
ओंजळीने ती जसा,झाकून घेते चेहरा... |
सत्यजित... |
43 |
रेडा कायें (म्हणोन) लपविता... ??? |
बॅटमॅन |
53 |
जीवन एक अर्थ! |
ज्योति अळवणी |
7 |
कधी किनारा लिहितो,किंवा... |
सत्यजित... |
20 |
कंडोम |
अविनाशकुलकर्णी |
16 |
दे बहाणे सोडुनी ... |
संदीप-लेले |
17 |
जन पळभर करतिल हाय हाय |
मूखदूर्बळ |
8 |
विडंबनकाव्यमाला-भाग-२ |
अत्रुप्त आत्मा |
16 |
विडंबनकाव्यमाला-भाग-३ |
अत्रुप्त आत्मा |
15 |
गेले प्यायचे राहूनी.. |
अत्रुप्त आत्मा |
115 |
<पहिली धार> |
प्यारे१ |
21 |
शांत अता या गाजा होणे नाही .. |
drsunilahirrao |
6 |
(ओंजळीने ती जरी झाकून घेते चेहरा...) |
चतुरंग |
10 |
रामदेव बाबा हो रामदेव बाबा |
अत्रुप्त आत्मा |
5 |
अता ही भेट टळणे शक्य आहे .. |
drsunilahirrao |
7 |
गझल - आणि हा खेळ झाला |
वेल्लाभट |
20 |
झिंग बोचर्या अहंपणाचे चगिन्यांचेदा चकानदु |
सूड |
140 |
स्वप्नांचे कवडसे |
शिवोऽहम् |
15 |
मैत्रि... |
DTPS |
4 |
ऐसी काये केली करणी काय जाणो |
सागरलहरी |
4 |
जीत्याची खोड |
संदीप-लेले |
5 |
कास्तकारी :( |
अॅस्ट्रोनाट विनय |
9 |
त्याची कविता, माझी कविता |
अनन्त्_यात्री |
16 |
सुगंध |
शिव कन्या |
4 |
आमचीही दांडगाई ___दान |
चिंटु |
16 |
पुस्तकदिनानिमित्त विडंबन- (बघ माझी आठवण येते का?) |
स्वामी संकेतानंद |
5 |
ये, दिग्बन्ध तोडून ये, |
अनन्त्_यात्री |
11 |
बाळकडू |
अॅस्ट्रोनाट विनय |
9 |
डिअरपिअर...मॅकबेथले... काळाची उधई गिळी टाकई! |
माहितगार |
0 |
घोर हा घनघोर आहे! |
सत्यजित... |
2 |
हीच तर सुरुवात आहे... |
सत्यजित... |
2 |
रच्याक्ने कच्ची पोळी हाकानाका |
माहितगार |
4 |
(नारंगीभारल्या रात्री होत्या) |
दशानन |
7 |
वचन |
संदीप-लेले |
0 |
मध्यरात्री |
अनन्त्_यात्री |
16 |
तू येता |
चांदणशेला |
3 |
(वडा तळलाच आहे तर...) |
चतुरंग |
14 |
लॉन-वरचं लगीन! |
अत्रुप्त आत्मा |
24 |
रक्तरंग |
संदीप-लेले |
6 |
घरटं |
Dr prajakta joshi |
0 |
..........पाठीशी नाही. |
अरूण गंगाधर कोर्डे |
0 |
आठवणी |
संदीप-लेले |
2 |