कृष्णछबी |
मायमराठी |
8 |
सरसर सरसर आली सर |
बिपीन सुरेश सांगळे |
8 |
तू मी अन पाऊस |
पाषाणभेद |
6 |
वारी |
मायमराठी |
6 |
दुष्ट दुष्ट बायको! |
अत्रुप्त आत्मा |
27 |
कविता: आज्जी माझी… |
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5 |
पावसाच्या धारा |
बिपीन सुरेश सांगळे |
0 |
इंद्रधनू |
पाषाणभेद |
8 |
असं वाटतं ! |
श्वेता२४ |
16 |
चंद्रयान आणि रिलेशनशिप |
पुणेरी कार्ट |
8 |
झरझर झरझर |
शिव कन्या |
16 |
माकडांच्या पुढे नाचली माणसे! |
गंगाधर मुटे |
16 |
लढली अशी कि ती जणू झुन्जीतच वाढली |
खिलजि |
8 |
हा संभ्रम माझा |
चांदणे संदीप |
4 |
अभंग... |
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5 |
निर्झर |
पाषाणभेद |
7 |
तुझे शहर |
शिव कन्या |
11 |
""कालचक्र"" |
मृगनयनी |
12 |
माफ करा राजे आम्ही पितो , होय आम्ही पितो |
खिलजि |
5 |
काल धरण बांधिले |
अनन्त्_यात्री |
5 |
आला आला रे आला महिना भादवा |
पाषाणभेद |
31 |
तुझ्या बरमुडा त्रिकोणा चे आकर्षण.... |
अविनाशकुलकर्णी |
35 |
घनदाट गर्द रेशमी केशकुंतल |
अविनाशकुलकर्णी |
2 |
कधीकधी मी हळवा होतो , बघुनी देव दानवांत |
खिलजि |
4 |
प्रेम कोडगे घेऊन फिरलो |
खिलजि |
3 |
सुखाच्या सीमेवर दुःखांची घरे वसतात |
खिलजि |
4 |
पावसाविषयी असूया |
पाषाणभेद |
5 |
पूर्वी आपण जिथे भेटायचो , तिथे आता एक टपरी झालीय |
खिलजि |
12 |
पृथ्वी उवाच |
श्रेयासन्जय |
9 |
सर्पणाला एकदा पालवी फुटली |
खिलजि |
24 |
(व्हिस्की पिऊन आलो...) |
गड्डा झब्बू |
12 |
(काय करून आलो) |
नाखु |
40 |
डॉक्टर हा निमित्तमात्र.. |
सोन्या बागलाणकर |
10 |
पावसा पावसा पडू नकोस |
बिपीन सुरेश सांगळे |
4 |
कविता पिंपळपान |
अत्रुप्त आत्मा |
32 |
पावसा पावसा पड रे |
बिपीन सुरेश सांगळे |
2 |
कोडगं व्हायचं... |
निओ |
4 |
बिल देऊन आलो.. |
गवि |
32 |
कुरळ्या बटावर माझ्या |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
(चहा पिऊन आलो..) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
9 |
असा पाऊस |
पाषाणभेद |
9 |
ऑफिसात जाऊन आलो |
महासंग्राम |
4 |
गझल : पुन्हा एकदा... |
bhagwatblog |
9 |
दाराआडचा पप्पू (आणि त्याची मम्मी) |
चित्रगुप्त |
13 |
(मिपा हे, दर्जेदार, लेखनाचे, म्हणे व्यासपीठ आहे) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
13 |
धागा चालेना, धागा पळेना... धागा संथ चाली, काही केल्या पेटेना |
चामुंडराय |
15 |
डोह-१ |
सागरलहरी |
2 |
वजनदार! |
चलत मुसाफिर |
8 |
डोह |
सागरलहरी |
2 |
कुरबुर झाली |
पाषाणभेद |
4 |
दे दे दे दे दे दे |
पाषाणभेद |
9 |
मळभ..! |
जेनी... |
17 |
स्व - राष्ट्र..!! |
राघव |
20 |
अज्ञाताच्या काठावर |
अनन्त्_यात्री |
7 |
शोधत होतो पुन्हा स्वत:ला |
अनन्त्_यात्री |
2 |
आज मी पुन्हा नापास झालो |
खिलजि |
6 |
ती म्हणाली " चिमणी " , मी म्हणालो भुर्रर्रर्र |
खिलजि |
5 |
वटवटसावित्री |
खिलजि |
4 |
जागरण.... |
अत्रुप्त आत्मा |
17 |
मी तुझा विचार करते |
शिव कन्या |
2 |
सिग्नल .....! |
फिझा |
5 |
बालमित्रांची सुट्टी.... |
bhagwatblog |
4 |
"फार काय" |
युयुत्सु |
2 |
मी पण अमिताभ बनलो असतो भाय |
खिलजि |
14 |
वळीव |
महासंग्राम |
6 |
सांग ना,सख्या |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
सांग ना,सख्या |
अविनाशकुलकर्णी |
0 |
जिलब्या |
अविनाशकुलकर्णी |
3 |
कवित्व इथले संपत नाही |
mrcoolguynice |
6 |
वदनी कवळ..... |
फुंटी |
8 |