पाखरांचे बोल |
चांदणशेला |
3 |
दडपे पोहे..... |
माम्लेदारचा पन्खा |
6 |
युग प्रवाहीणी |
Pradip kale |
10 |
तुझी वाट |
चांदणशेला |
3 |
सोहळा |
मी-दिपाली |
8 |
येत नाही... |
अजब |
7 |
अन् मग |
अनन्त्_यात्री |
7 |
जीवघेणा फास |
मिसळलेला काव्यप्रेमी |
28 |
अस्त |
सुमित_सौन्देकर |
3 |
त्या पोराने |
मनोज |
9 |
क्षमा प्रार्थना |
ज्ञानोबाचे पैजार |
19 |
कोरोना अमिताभ बच्चनलाही का छळत असतो ? |
माहितगार |
1 |
विठूचा रंग काळा, आगळा |
शेखरमोघे |
2 |
वारी नाही ... |
मनोज |
1 |
चुकलेली वारी.. |
मी-दिपाली |
17 |
सखे..फुलांसवेच आज माळ चांदवा! |
सत्यजित... |
24 |
मी अभंगाची तुक्याच्या एक पंक्ती जाहलो! |
सत्यजित... |
12 |
(सकाळी सकाळी) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
8 |
((मित्र घरी जायला निघतो तेव्हा)) |
कानडाऊ योगेशु |
8 |
ती आली तर |
मनोज |
1 |
फुलपाखरू |
मन्या ऽ |
6 |
( जेव्हा खूप खूप पाऊस पडेल ना ) |
रातराणी |
17 |
सुशांत |
अनन्त्_यात्री |
6 |
सकाळी सकाळी |
मनोज |
6 |
शब्द |
पाटिल |
5 |
जेव्हा खूप खूप पाऊस पडेल ना, |
प्राची अश्विनी |
20 |
आई घरी जायला निघते तेव्हा... |
प्राची अश्विनी |
22 |
तू गेल्यावर |
मनोज |
8 |
अस्पर्शिता.. |
सस्नेह |
6 |
(दिवस तुझे हे फुगायचे) |
गणेशा |
11 |
(मुलगी घरी जायला निघते तेव्हा...) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
15 |
वाटले की ती,अशी...जवळूृृृऽन गेली! |
सत्यजित... |
14 |
माैन |
मी-दिपाली |
12 |
अनादी .....अनंत..... |
Vivekraje |
1 |
रूटीनाच्या रेट्यातही |
अनन्त्_यात्री |
4 |
असा भास होतो |
मनोज |
5 |
ती कळ्या देऊन गेली.. |
प्राची अश्विनी |
21 |
भावंडं |
मायमराठी |
2 |
दोघांत सांडलेला अंधार मी गिळालो. |
कौस्तुभ भोसले |
1 |
कळ्या.. |
मनोज |
1 |
आमंत्रण |
अनन्त्_यात्री |
11 |
पाहता वळून मागे |
मनोज |
1 |
(धागा धागा.....) |
अनन्त्_यात्री |
6 |
आयुष्याच्या वाटेवर.. |
मन्या ऽ |
3 |
प्रेम.. |
मन्या ऽ |
15 |
पाऊस |
प्रमोद देर्देकर |
10 |
गाण्यास पावसाच्या... |
सत्यजित... |
18 |
आणि आत एक पाऊस.. |
पाटिल |
8 |
आनंद शोधतांना..! |
राघव |
12 |
कशास मग ते मोठे व्हावे? |
मनोज |
18 |
गणित.. |
प्राची अश्विनी |
21 |
जुना वाडा |
मनोज |
11 |
वादळ |
पाषाणभेद |
2 |
भेट ..... |
फिझा |
12 |
प्रवासी |
अनुस्वार |
2 |
मरण |
कौस्तुभ भोसले |
1 |
पन्नाशीचा टप्पा |
मनोज |
17 |
अंताक्षरी |
बाजीगर |
2 |
झेन काव्य |
मूकवाचक |
15 |
चक्र |
अनन्त्_यात्री |
11 |
क्षितिजावरती पहाट होता..... !!! |
अमोल_००३ |
1 |
कोंकणची वेदना.. |
अभिबाबा |
3 |
।। मातृदशक ।। |
अमोल_००३ |
7 |
"सद्गुरू"वाचोनी सापडली सोय |
अनन्त्_यात्री |
16 |
का न व्हावे मी स्वतःच सूर्य !!! |
अमोल_००३ |
2 |
आणि अश्या वेळी |
कौस्तुभ भोसले |
6 |
आत्तापर्यंत काय केलं? |
मनिष |
10 |
राहून गेले.. |
मन्या ऽ |
4 |
ढासळला वाडा |
पाषाणभेद |
3 |
बायका... |
प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे |
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