गझल अनुवाद मालिका - कौस्तुभ आजगांवकर
गझल अनुवाद मालिका - कौस्तुभ आजगांवकर
पारा-पारा हुआ पैराहन-ए-जाँ
फिर मुझे छड़ गये चारागराँ
कोई आहट, न इशारा, न सराब
कैसा वीराँ है ये दश्त-ए-इम्काँ
चारसू ख़ाक़ उड़ाती है हवा,
अज़कराँ ताबाकराँ रेग-ए-रवाँ
वक़्त के सोग में लम्हों का जुलूस
जैसे इक क़ाफ़िला-ए-नौहागरां
*- सय्यद रजी तिरमिजी*
****** भाषांतर *******
हे देहवस्त्र आता पुरते विरून गेले
मग सोयरेसखेही मागे सरून गेले
चाहूल ना कुणाची आशा न मृगजळाची
हे मेघ संभवाचे मग ओसरून गेले