घे भरारी.. |
मन्या ऽ |
2 |
उसणं अवसान |
कौस्तुभ भोसले |
8 |
श्रावणसरी |
मायमराठी |
10 |
||चंद्रवेळ|| |
प्राची अश्विनी |
13 |
माझी काळोखाची कविता |
चांदणे संदीप |
10 |
चांदणरात |
कौस्तुभ भोसले |
4 |
असा एक शत्रूच खुद्दार व्हावा |
कौस्तुभ भोसले |
12 |
प्राणवेळा |
कौस्तुभ भोसले |
6 |
स्वप्नाला पडली भूल |
विजुभाऊ |
6 |
शेतकी कॉलेजचे दिवस |
बबु |
4 |
अबोल प्रीत बोलली... |
K Sangeeta |
14 |
सनईचे.. सूर वाजले.. दारी |
गणेशा |
4 |
कवितेच्या विषाणूने |
अनन्त्_यात्री |
1 |
वाट.. |
मन्या ऽ |
7 |
आत्म दीपो भव |
Kaustubh bhamare |
4 |
विडंबन ( चायनाच्या वूहानमध्ये...) |
मायमराठी |
6 |
खूप झालं देवा आता.... |
Vivekraje |
13 |
निर्घृण खुन.. |
मन्या ऽ |
2 |
प्राजक्ताची फुले |
मनोज |
6 |
हो मनुजा उदार तू .. |
मनोज |
2 |
सुट्टीतील प्रेम |
Shubham vanve |
5 |
सुट्टीतील प्रेम |
Shubham vanve |
0 |
सुट्टीतील प्रेम |
Shubham vanve |
0 |
मौनाचे गुपित |
चलत मुसाफिर |
10 |
मै एक चिराग बन जाऊं |
गणेशा |
4 |
संन्यास |
चलत मुसाफिर |
9 |
नाभिका रे केस वाढले रे, धैर्याने उघड जरा आज सलून रे |
चामुंडराय |
18 |
एकदाच ओलांडून अंतर... |
प्राची अश्विनी |
15 |
कोरोना गीत |
प्रकाश घाटपांडे |
11 |
क्वारंटाईनमधले प्रेम |
मायमराठी |
2 |
विद्ध |
चलत मुसाफिर |
4 |
करोणागीत.. |
माम्लेदारचा पन्खा |
2 |
गोष्ट |
अनन्त्_यात्री |
1 |
प्रवास |
चलत मुसाफिर |
2 |
बास्टऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽर्ड |
माहितगार |
3 |
कस सांगू तुला |
Pritam salunkhe |
1 |
.. तम दाहक लहरी होते! |
राघव |
3 |
जुना ओसाड वाडा |
दत्ता काळे |
24 |
माझं काय चुकलं.. |
प्राजु |
41 |
माणसं अशी का वागतात? |
चतुरंग |
19 |
मास्कमधून |
चांदणे संदीप |
5 |
एक व्हायरस साला आदमी को.. |
अनन्त्_यात्री |
2 |
असुनी स्वत:च पाशी |
संदीप-लेले |
6 |
क्लीओपात्रा |
अविनाशकुलकर्णी |
3 |
आला रे आला कोरोना आला |
खिलजि |
3 |
मन |
संदीप-लेले |
5 |
तू अशी |
संदीप-लेले |
3 |
तुलाही,मलाही |
अविनाशकुलकर्णी |
2 |
कोरोना गो, गो कोरोना; साहेब म्हटले कोरोनाला |
पाषाणभेद |
4 |
का चाफा म्लान पडला |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
अपुर्ण |
अविनाशकुलकर्णी |
4 |
COVID19 च्या नावानं बो बो बो बो |
अनन्त्_यात्री |
3 |
वुई मीस 'यू'! |
माहितगार |
3 |
होळी |
अविनाशकुलकर्णी |
0 |
तारुण्य पुन्हा जगताना |
माहितगार |
5 |
ज्ञानोबांस नंब्र विनंती |
अनन्त्_यात्री |
12 |
अंबानींची फणी |
खिलजि |
2 |
राधाकृष्ण प्रणय प्रितीचे गीत |
माहितगार |
2 |
ती संध्याकाळ |
माहितगार |
2 |
एक चांदणी माझ्या घरात डोकावते |
चांदणे संदीप |
7 |
धर्म इथे बेताल झाला |
खिलजि |
2 |
(कितनी राते....) |
ज्ञानोबाचे पैजार |
4 |
मानव प्रगल्भ अनसुय कधीच होणार नाही ? |
माहितगार |
2 |
आजि मराठीचा दिनु! |
Sumant Juvekar |
2 |
भादरायला हवे वाढलेले, भादरायला गेलो |
खिलजि |
9 |
कांताला सुरु झाल्या वांत्या |
खिलजि |
2 |
ग चांदण्यांनो |
चांदणे संदीप |
6 |
माय-(मराठीची) पोएम |
अनन्त्_यात्री |
0 |
मिलिंदमिलन |
मायमराठी |
8 |
बघुनी तुझी ती रंगीत अम्ब्रेला |
खिलजि |
2 |