दिलावर फ़िगार ह्या उर्दू हास्य कवीची ही 'शायरे आज़म' कविता मराठीतील काही अरभाट किंवा चिल्लर कवींनाही लागू व्हावी. वाचा आणि आनंद घ्या. कुठे काही अडखळले तर जरूर विचारा..
शायरे आज़म
कल इक अदीबो-शायर व नाक़िद मिले हमें
कहने लगे की आओ ज़रा बहस ही करें
करने लगे बहस की अब हिंदो-पाक में
वो कौन है के शायरे-आज़म जिसे कहें
मैंने कहा 'जिगर'! तो कहा डेड हो चुके!
मैंने कहा के 'जोश'! कहा, क़द्र खो चुके
मैंने कहा 'फ़िराक़' की अज़मत का तबसरा!
बोले 'फ़िराक़' शायरे-आज़म! अराररा!
मैंने कहा 'नदीम', बोले के जरनलिस्ट
मैंने कहा 'रईस', तो बोले सटायरिस्ट
मैंने कहा के हज़रते 'माहिर' भी ख़ूब हैं
कहने लगे के उनके यहां भी उयूब हैं
मैंने कहा 'शक़ील' तो बोले अदब फ़रोश
मैंने कहा 'क़तील ' तो बोल के बस ख़मोश
मैंने कहा कुछ और, तो बोले के चुप रहो
मैं चुप रहा तो कहने लगे और कुछ कहो
मैंने कहा के 'साहिरो-अहसानो-जाँनिसार'
बोले के शायरों में न कीजे उन्हे शुमार
मैंने कहा कलामे-'रविश ' लाजवाब है
कहने लगे का उनका तरन्नुम ख़राब है
मैंने कहा के तरन्नुमे-'अन्वर' पसंद है?
कहने लगे के उनका वतन देवबंद है
मैंने कहा की उनकी ग़ज़ल साफ़ो-पाक है
बोले के उनकी शक़्ल बड़ी ख़ौफ़नाक है
मैंने कहा के हज़रते 'बहज़ाद' लख़नवी
कहने लगे के रंग है उनका रिवायती
मैंने कहा 'कमर' का तगज़्ज़ुल है दिलनशीं
कहने लगे उनमें तो कुछ जानही नहीं
मैने कहा 'नियाज़' तो बोले के ऐबबीं
मैंने कहा 'सुरूर' तो बोले की नुक्ताचीं
मैंने कहा 'ज़रीफ़' तो बोले के गंदगी
मैंने कहा 'सलाम' तो बोले के बंदगी
मैंने कहा 'फ़राज' तो बोले बहुतही कम
मैंने कहा 'अदम' तो बोले के कालदम
मैंने कहा 'ख़ुमार' कहा फ़न में कच्चे हैं
मैंने कहा के 'शाद' तो कहा फ़न में बच्चे हैं
मैंने कहा के तंजनिगारों में देखिये
बोले के सैकडों में हज़ारों में देखिये
मैंने कहा के शायरे आज़म है 'जाफरी'
कहने लगे के आपकी है उनसे दोसती
मैंने कहा के ये जौ है 'महशर' इनायती
कहने लगे के आप हैं उनके हिमायती
मैंने कहा 'ज़मीर' के ह्यूमर में फ़िक़्र है
बोले ये किसका नाम लिया किसका ज़िक्र है
मैंने कहा के ये जो दिलावर 'फ़िगार' है
बोले के वो तो सिर्फ़ ज़राफ़त निगार है
मैंने कहा मज़ाह में इक बात भी तो है
बोले के उसके साथ ख़ुराफ़ात भी तो है
मैंने कहा तो शायरे आज़म कोई नहीं?
कहने लगे के ये भी कोई लाज़मी नहीं
मैंने कहा तो किसको मैं शायर बड़ा कहूं
कहने लगे के मैं भी इसी कश्मकश में हूं
पायाने कार ख़त्म हुआ जब ये तजज़िया
मैंने कहा हुजूर! तो बोले के शुक्रिया!
काही कठीण शब्दांचे अर्थ
शायरे आज़म- महान कवी
अज़मत का तबसरा!- commentary on greatness
अदीबो-शायर व नाक़िद - साहित्यिक-कवी आणि टीकाकार
उयूब - ऐबचे बहुवचन, दोष
क़द्र - मोल
अदब फ़रोश - कला, साहित्य विकणारा
कालदम- आउटडेटेड
नुक्ताचीं - टीका करणारा
ऐब बीं - दोष बघणारा
फ़न- कौशल्य
तंज निगार - व्यंग्यकार
ज़राफ़त निगार - Witty
खुराफ़ात- खुरापत
हिमायती-समर्थक
फ़िक्र - विचार
लाज़मी - आवश्यक
पायाने कार - सरतेशेवटी, आखिरकार, शेवटी
तजज़िया- संभाषण,
प्रतिक्रिया
18 Sep 2007 - 11:48 am | विसोबा खेचर
चित्तोबा,
दिलावर फ़िगार ह्या उर्दू हास्य कवीची ही 'शायरे आज़म' कविता मराठीतील काही अरभाट किंवा चिल्लर कवींनाही लागू व्हावी. वाचा आणि आनंद घ्या.
दिलावर फ़िगार साहेबांनी छानच लिहिलं आहे. त्यांना इथे पेश केल्याबद्दल आपले अनेक आभार. या निमित्ताने ऊर्दू भाषेची ओळख करून देणारे साहित्य इथे अजूनही यावे अशी मनिषा आहे..
आपला,
(शायरे आज़म!) तात्या.
18 Sep 2007 - 12:30 pm | विसुनाना
हुजूर! ;-)
18 Sep 2007 - 3:04 pm | तो
बरेच नवे तखल्लूस कळाले. तफदीश केली पाहिजे.
18 Sep 2007 - 7:07 pm | प्रियाली
मजा वाटली. ubiquitous प्रकार वाटला.
17 Oct 2013 - 7:18 pm | जयंत कुलकर्णी
फार छान !