मेरे मुर्गे को क्या हुवा चाचा?
मेरे मुर्गे को क्या हुवा चाचा?
खाता नही पिता नही
बंद पडलीय त्याची वाचा ||धृ||
अब मै क्या करू उसको?
नही डाक्टर दिखानेको
तेरे आंगनमे वो जाताय
कुकुचकु कुकुचकु वो वरडताय
मेरा दानापानी नही उसको भाता
अरे मेरे मुर्गे को क्या हुवा चाचा? ||१||
देख हळुहळु तो कसा भागताय
लई उदास उदास दिखताय
चोच उघडी रखके तो बसतोय
नही फडफड फडफड करताय
अब्बी तुच हैरे बाबा उसका दाता
मेरे मुर्गे को क्या हुवा चाचा? ||२||
मै क्या बोलतोय अब तू ध्यानसे सुन चाचा
ये मुर्गा और तेरी मुर्गीपे प्रसंग आयेलाय बाका
अरे दोनो का भिड गया आपसमें टाका
अंधेरेमे जाके घेती एकमेकका मुका
ये प्रेमीयोंके बीचमे आता कोनी येवू नका
अबी दोनोके शादीका टैम आयेला है बरका
मेरे मुर्गे को प्यार हुवा है रे चाचा ||३||
- पाषाणभेद (दगडफोड्या)
२३/०५/२०११
प्रतिक्रिया
23 May 2011 - 6:00 am | निनाद
काव्य खतरनाक आहे.
अगदी मालेगावला गेल्यासारखे वाटले. :)
तुमच्या लोकगीतांचा अल्बम काढला तर तो तुफान लोकप्रिय होईल या शंका वाटत नाही.
23 May 2011 - 6:24 pm | अरुण मनोहर
हां, यही प्यार है!
पडोसन अपनी मुर्गीको रखना संभाल,
मेरा मुर्गा हुवां है दिवाना!
23 May 2011 - 4:33 pm | चिगो
येकदम बोली मराठी-हिंदीची मिसळ..
23 May 2011 - 5:05 pm | टारझन
यु शुड नो अबाउट युवर कॉक पाभे . हाऊ कॅन चाचा नो व्हाट हॅज हॅपन्ड टू युवर कॉक ? डिड यु गिव्ह युवर कॉक टु चाचा ?
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25 May 2011 - 12:07 am | आनंदयात्री
आजकाल चाचा वर्ड लैच फेमस झालाय.
23 May 2011 - 7:36 pm | गणेशा
मस्त .. विनोदाची झालर पण मस्त आवडली कविता
23 May 2011 - 11:37 pm | आत्मशून्य
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