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मिसळपाव.कॉमवर प्रकाशित झालेले सर्व प्रकारचे नवीन साहित्य येथे बघता येईल.
| प्रकार | लेख | लेखक | प्रतिक्रिया |
|---|---|---|---|
| जे न देखे रवी... | मं...(मग)! | प्राची अश्विनी | 4 |
| जनातलं, मनातलं | धिक्कार ते अधिकार : माझा प्रवास व्हाया..३ | चिगो | 77 |
| जे न देखे रवी... | रे.....! | प्राची अश्विनी | 9 |
| जनातलं, मनातलं | लोकं पूर्वकल्पीत धारणा ठेवून एकमेकांशी का वागतात? | श्रीकृष्ण सामंत | 1 |
| जे न देखे रवी... | गं...! | प्राची अश्विनी | 9 |
| पाककृती | आजचा मेन्यू -४ मोड आलेल्या मेथी दाण्यांची भाजी | Bhakti | 11 |
| जनातलं, मनातलं | ढगाळ वातावरण | श्रीकृष्ण सामंत | 8 |
| जनातलं, मनातलं | जाळं | बिपीन सुरेश सांगळे | 3 |
| जनातलं, मनातलं | कोपनहेगन-पॅरीस भटकंती-६ | अमरेंद्र बाहुबली | 13 |
| भटकंती | कोपनहेगन - पॅरिस भटकंती -२ | अमरेंद्र बाहुबली | 30 |
| जे न देखे रवी... | त्या तरूतळी | अनन्त्_यात्री | 14 |
| काथ्याकूट | फायनान्शियल गोल्स सेटिंग | kvponkshe | 39 |
| जनातलं, मनातलं | रजिस्ट्रेशन | भागो | 6 |
| जनातलं, मनातलं | एका कोळीयाने, | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जनातलं, मनातलं | स्वतःची अणू अस्त्रं भारताने स्वतःच निर्माण केली. | श्रीकृष्ण सामंत | 12 |
| काथ्याकूट | आरोप आणि शिक्षा , एक चौकस प्रश्न "दया इसमे कूच तो गडबड है ..." | चौकस२१२ | 2 |
| जनातलं, मनातलं | आ. ई. तु झी. आ. ठ. व. ण. ये. ते | श्रीकृष्ण सामंत | 27 |
| जे न देखे रवी... | एक आत्मशोध... | बाजीगर | 2 |
| काथ्याकूट | नीरव मोदी व पी.एन.बी. घोटाळा | माईसाहेब कुरसूंदीकर | 122 |
| जनातलं, मनातलं | पाकिस्तानने भारतावर परमाणू अस्त्र वापरलं आणि भारताने आपलं— | श्रीकृष्ण सामंत | 6 |
| जनातलं, मनातलं | गोष्ट एका माणसाची - १ | प्रसाद गोडबोले | 10 |
| राजकारण | डावे-उजवे | विकास | 31 |
| काथ्याकूट | विचारवंत म्हणजे नक्की कोण? | मुत्सद्दि | 27 |
| जनातलं, मनातलं | ( लपविलास तू तगडा खंबा – डोम्बलडन ) | चौथा कोनाडा | 26 |
| काथ्याकूट | अरुंधती रॉय होण्यापेक्षा मला अण्णा व्हायला का आवडेल? | इष्टुर फाकडा | 15 |
| जनातलं, मनातलं | ३२ रुपये आहेत मग तुम्ही गरीब नाही | शाहिर | 42 |
| जनातलं, मनातलं | निसर्गरम्य शांतता | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| काथ्याकूट | पाकिस्तानचा सम्मान करण्याचे उपाय | विवेकपटाईत | 6 |
| जनातलं, मनातलं | ईट्स अफ्रिका ब्वना -२ !! | टारझन | 59 |
| जनातलं, मनातलं | मौन! | Bhakti | 62 |
| जनातलं, मनातलं | आता काँग्रेसवरच बंदी घाला ! | सनातन | 23 |
| जे न देखे रवी... | (चार दिवस मिळाले असता ) | कर्नलतपस्वी | 13 |
| जनातलं, मनातलं | माझ्या वहितला एक उतारा,-मनोदशा (mood ). | श्रीकृष्ण सामंत | 2 |
| जनातलं, मनातलं | १८५७ अ हेरीटेज वॉक (५) | विजुभाऊ | 12 |
| जनातलं, मनातलं | समुद्राच्या लाटांवर माझ्या विचारांची खलबल. | श्रीकृष्ण सामंत | 1 |
| जनातलं, मनातलं | एक्कावन्न( २) | विजुभाऊ | 16 |
| जे न देखे रवी... | काय करावे | श्रीकृष्ण सामंत | 5 |
| जनातलं, मनातलं | सोनचाफ्याचची फुलं आणि तो स्पर्श (भाग ३ ) | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जनातलं, मनातलं | अर्धा कप दुध... | कर्नलतपस्वी | 18 |
| जनातलं, मनातलं | संस्कृती.. | मिसळपाव पंचायत समिती | 23 |
| जनातलं, मनातलं | प्रश्न एवढाच आहे की, तुम्हाला कोणत्या प्रकारची व्यक्ती व्हायचं आहे? | श्रीकृष्ण सामंत | 2 |
| काथ्याकूट | शहजाद पुनावाला मुलाखत | चौकस२१२ | 9 |
| जनातलं, मनातलं | मक्केतील उठाव १ | हुप्प्या | 46 |
| भटकंती | भारताबाहेरचा भारत -अंदमान १ | राजेंद्र मेहेंदळे | 32 |
| जनातलं, मनातलं | ढग हे माझे अनोळखे खरे मित्र. | श्रीकृष्ण सामंत | 3 |
| जनातलं, मनातलं | नॉर्वेच्या दरीखोर्यातून.... भाग अंतिम | मितान | 40 |
| जनातलं, मनातलं | नॉर्वेच्या दरीखोर्यातून.... भाग ४ | मितान | 22 |
| जे न देखे रवी... | अनमोल आहे जीवन अपुले मित्रांनो | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जनातलं, मनातलं | शिकार... | जयंत कुलकर्णी | 7 |
| जनातलं, मनातलं | वरवर लहान वाटणारे अनुभव. | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| मिपा कलादालन | मडिकेरी ( कूर्ग ) - एक धावती सहल | कंजूस | 27 |
| काथ्याकूट | मनात आले ते... तसे... | असा मी असामी | 40 |
| जनातलं, मनातलं | प्रत्येक नगरात एक भारतीय युद्ध नायकांचा स्मरणपथ आणि मैदान | निनाद | 26 |
| जे न देखे रवी... | मिसळाख्यान | शैलेश | 8 |
| जनातलं, मनातलं | "जीवन पूर्णतः जगा" म्हणजे काय रे भाऊ? | श्रीकृष्ण सामंत | 1 |
| जनातलं, मनातलं | त्याच्या सारखा नशिबवान तोच. | श्रीकृष्ण सामंत | 1 |
| जे न देखे रवी... | सुंदर गीते ही स्मरणात येती | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जनातलं, मनातलं | आतुरतेने वाट पाहत आहे तो चित्रपट | चौकस२१२ | 7 |
| जनातलं, मनातलं | लेखक | भागो | 0 |
| जनातलं, मनातलं | लागट बोलणं | श्रीकृष्ण सामंत | 24 |
| जे न देखे रवी... | चार दिवस मिळाले असतां हसू खेळून निभवावे | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जनातलं, मनातलं | गाढ झोपेतलं माझं स्वप्नं. | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जनातलं, मनातलं | निसर्ग सृष्टीचं सादरीकरण | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जनातलं, मनातलं | नॉर्वेच्या दरीखोर्यातून.... भाग ३ | मितान | 28 |
| जे न देखे रवी... | कसं जमतं तुला (डुआयडी काढणं) | टवाळ कार्टा | 39 |
| जनातलं, मनातलं | “आनंदी असणं म्हणजे काय हो भाऊसाहेब?” | श्रीकृष्ण सामंत | 3 |
| जनातलं, मनातलं | संगीत | श्रीकृष्ण सामंत | 0 |
| जे न देखे रवी... | अक्षय्य तृतीया | बाजीगर | 10 |
| जनातलं, मनातलं | धटिंगण रॉ आणी वॉशिंग्टन पोस्ट ची कावकाव | वडगावकर | 105 |
| जनातलं, मनातलं | न्यूत की द्यूत? | माहितगार | 19 |