लोकमान्य
आम्च्या बाई मस्स कड्डक
मारत्यात, अंगठे बी धराया लावत्यात
अतल्याने बोरं खाल्ली आनि बिया टाकल्या बाकाखाली.
मी बी खाल्ली पन बिया घातल्या खिशात. झाड लावनार.मंग बाई आल्त्या वर्गात इंस्पेक्टर सोबत.
कचरा बघुन भडकल्याच. पन बोलाल्या नाहित साहेबासमोर.साहेबाने म्हया इचारले "आज २३ जुलाई म्हंजे काय माहितीये का?"
म्या म्हनलो "माहित नसायला काय झालं? आज लोकमान्यांचा वाढदिवस." टिळकांची गोष्ट बी सांगितली.
मास्तर खुष. चॉकोलेट देउन गेले निघुन.चॉकोलेट पडले म्हनुन उचलाया गेलो तर बियाच पडल्या खाली.
बाई म्हनल्या "तुच केला कचरा उचल समदा आता."
म्या म्हनलो "आज टिळकांचा बड्डे. मी कचरा केला नाय मी उचलनार नाय."बाईनी काहून वर्गाबाह्यर काढला?
**************लोक्शाई - उत्तरार्ध**************
बाई म्हनल्या "कचरा उचलनार नाहिस तर पालकांना बोलावुन आण." पप्पा तर गावाबाहेरच व्हते. मंग मी रोज वर्गाबाहेर.
आज पप्पा धा दिसांनी परत येनार म्हनुन म्या एक्दम खुषीत. आता वर्गाबाह्यर नाही थांबायला लागनार. घरी गेलो तर पप्पा भडकलेले. म्हनाले "२५ जनांना संसदेबाहेर नाही काढु शकत. हा तर लोक्शाईचा खून आहे. पुतळा जाळु, मोर्चे काढु, लोक्शाई जिवंत ठेवाया हवी". पप्पांना कावलेलं बघुन मी त्यांना काईच सांगितलं नाही.
दुसर्या दिवशी बाईंनी विचारलं "पालक कुठायत? आले नसतील तर हो बाहेर".
म्या म्हनलो "तुमी मला बाह्यर नाही काढु शकत." लोक्शाईचा खून, पुतळा, मोर्चा वगैरा बोल्लो. लय सटकवला बाईंनी. गाल लाल झाल्ता.
लोक्शाई फकस्त मोठ्यांसाठीच व्हय?
प्रतिक्रिया
22 Aug 2015 - 4:29 pm | पगला गजोधर
Aavadali
22 Aug 2015 - 5:07 pm | लाल टोपी
+१
22 Aug 2015 - 5:12 pm | बाबा योगिराज
खीक
22 Aug 2015 - 5:13 pm | प्यारे१
ह्या ह्या ह्या!
22 Aug 2015 - 5:14 pm | आनंद
+१
22 Aug 2015 - 5:14 pm | पद्मावति
मस्तं आवडली.
पुर्वार्ध आणि उत्तरार्ध दोन्हीही भाग वाचले. सही झाले आहेत.
22 Aug 2015 - 5:16 pm | एस
हाहाहा!
22 Aug 2015 - 5:43 pm | अभ्या..
मस्त स्टुरी.
+१
(फकस्त असल्या जहाल नेत्याच्या गाबड्याला वर्गाबाहेर काढणारी अन सटकावणारी एखादीतरी शिक्षिका या लोक्शाईत असावी एवढीच ईच्छा)
22 Aug 2015 - 6:44 pm | प्यारे१
(बाई नंतर वाड्यावर जात असल्या तर???? ;) )
-निळू फुले
22 Aug 2015 - 6:07 pm | तुमचा अभिषेक
+१ हाहा मस्तच :)
22 Aug 2015 - 6:15 pm | पैसा
+१
हाहाहा! मस्तच!
22 Aug 2015 - 6:45 pm | नूतन सावंत
+१
22 Aug 2015 - 7:00 pm | प्राची अश्विनी
+ ११
22 Aug 2015 - 7:55 pm | इशा१२३
+१
22 Aug 2015 - 8:22 pm | मांत्रिक
+१
22 Aug 2015 - 8:25 pm | टुंड्रा
+१
22 Aug 2015 - 8:32 pm | यशोधरा
आरं द्येवा!
22 Aug 2015 - 9:41 pm | अजया
+१
22 Aug 2015 - 11:51 pm | अत्रुप्त आत्मा
+१
23 Aug 2015 - 12:38 am | स्रुजा
हाहाहा +१
23 Aug 2015 - 1:00 am | उगा काहितरीच
आवडले दोन्ही भाग ! +१
23 Aug 2015 - 1:09 am | रेवती
+१. आवडली.
23 Aug 2015 - 6:02 am | dadadarekar
मस्त
23 Aug 2015 - 7:28 am | अनिरुद्ध.वैद्य
आवडली.
23 Aug 2015 - 8:15 am | शिवोऽहम्
मस्त!
23 Aug 2015 - 8:43 am | माहितगार
+१
पुर्वार्ध अधिक सहज वाटला. उत्तरार्धात वर्तमानाचा संदर्भ घेऊन हलकेच विनोदाची झालर आणि विद्यार्थ्याची कारुण्यमय हतबलता एकदम जाणवतात आणि विरोधाभासाच्या कारणाच मुलाला न होणार आकलन सुरेख रंगवल्यामुळे शेवट मस्त जमलाय. पण विनोद साधताना उत्तरार्धात वर्तमान संदर्भाचा प्रभाव अधिक जाणवतो असं काहीस जाणवल.
पुलेशु
23 Aug 2015 - 10:00 am | विवेकपटाईत
+१११११... सर्वात जास्त आवडलेला उतरार्ध
23 Aug 2015 - 3:39 pm | gogglya
+१११
23 Aug 2015 - 4:56 pm | डॉ सुहास म्हात्रे
+१
लै ब्येस !
24 Aug 2015 - 2:55 am | राघवेंद्र
+१
24 Aug 2015 - 4:30 am | अरवीन्द नरहर जोशि.
एकदम फक्कड .
24 Aug 2015 - 6:08 am | चित्रगुप्त
व्वा मस्त.
उत्तरार्धात काय घडणार, याची अजिबात कल्पना पूर्वार्ध वाचून आली नाही. पूर्वार्धात टिळक आणि उत्तरार्धात हल्लीचा नेता, हे मेतकूटही झकास.
24 Aug 2015 - 6:48 am | चाणक्य
खूप आवडला हा पण भाग.
24 Aug 2015 - 8:11 am | बोका-ए-आझम
मस्तच! +१
24 Aug 2015 - 12:01 pm | चिगो
+१.. येक नंबर, शेठ.. म्हणूनच म्या मास्तरायच्या फुडं अक्कल नाय पाजतायचो.. लै मारे इच्याभिना..
24 Aug 2015 - 3:10 pm | समीरसूर
छान!
24 Aug 2015 - 3:24 pm | चिनार
+१
24 Aug 2015 - 3:35 pm | द-बाहुबली
पहील्यापेक्षा जास्त रोचक.
24 Aug 2015 - 3:37 pm | मोहन
+१
24 Aug 2015 - 4:37 pm | तुडतुडी
उत्तरार्ध एवढा आवडला नै . खरा तर पूर्वार्धात सुधा बिया त्याच्या खिशातून खाली पडल्या तेव्हा त्या त्यानंच उचलायला हव्या होत्या ना
26 Aug 2015 - 10:57 am | चाणक्य
सगळा कचरा तू उचल असं म्हणाल्या बाई त्याला.फक्त त्याच्या खिशातून पडलेल्या बिया नाही.
24 Aug 2015 - 5:20 pm | नीलमोहर
+१
24 Aug 2015 - 6:28 pm | मी-सौरभ
लै भा हा री ही...
24 Aug 2015 - 7:59 pm | मधुरा देशपांडे
+1
26 Aug 2015 - 11:16 am | नाखु
दुसर्या भागात "ताजा ताजा" संदर्भ अगदी झक्कास!
26 Aug 2015 - 11:43 am | संचित
+१
26 Aug 2015 - 12:42 pm | नया है वह
+१
26 Aug 2015 - 12:44 pm | विशाल कुलकर्णी
+१
26 Aug 2015 - 1:41 pm | लोहित
+१
26 Aug 2015 - 1:42 pm | लोहित
+१
26 Aug 2015 - 2:03 pm | अन्या दातार
झकास उत्तरार्ध. लहानपणी पेप्रातले असे मोठमोठे शब्द फेकायची लैच उत्सुकता/खाज असते.
26 Aug 2015 - 2:18 pm | गिरकी
+1
26 Aug 2015 - 4:24 pm | माधुरी विनायक
पूर्वार्ध आणि उत्तरार्ध, दोन्ही स्वतंत्रपणे सुद्धा छान जमलेत. उत्तरार्धातील ताजे भाष्य मस्त...!
29 Aug 2015 - 11:43 pm | रातराणी
+1
7 Sep 2015 - 9:56 am | मृत्युन्जय
सर्व वाचक प्रतिसादकांचे अनेक आभार. तुमच्या प्रोत्साहनामुळे आणि प्रतिसादांमुळे हुरुप आला.
28 Mar 2020 - 5:45 pm | चौथा कोनाडा
मस्त, झ्यकास, खुसखुशीत !