कल जो पी थी अजी ये तो उसका नशा है, तुम्हारी क़सम आज पी ही नही |

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संजय क्षीरसागर in जनातलं, मनातलं
17 Apr 2017 - 8:52 pm

फैझ अहमद फैजची ही रचना विजय सिंंगनं गायली आहे. विजय सिंग केवळ या एका गाण्यामुळे अजरामर झालायं आणि शराबींसाठी हा कलाम म्हणजे जगातल्या कोणत्याही काव्यापेक्षा सर्वश्रेष्ठ ठरावा असा आहे.

जे (किंवा ज्या) पीत नाहीत त्यांच्यासाठी हा लेख काही कामचा नाही, त्यांनी उगीच रंगाचा बेरंग करु नये.

आपके वासते गुनाह सही,
हम पीए तो शबाब बनती है |
सौ ग़मोंको निचोड़नेके बाद,
एक क़तरा शराब बनती है |

इत्तेफा़कन शराब पीता हूं,
एहतीयापन शराब पीता हूं,
जब खुशी मुझसे रूठ जाती है,
मैं इंतेक़ामन शराब पीता हूं |

जख़्म सीनेकी क़सम खा लूंगा,
साथ जीनेकी क़सम खा लूंगा,
आज जी भरके पीला दे साक़ी,
आज जी भरके पीला दे साक़ी,
कलसे ना पीनेकी क़सम खा लूंगा !

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जामसे जाम तो टकराके पीयो,
जामसे जाम तो टकराके पीयो,
हमसे अपनी नज़र मिलाके पीयो,
देखनेंमे शराब तो पानी है,
इसमें पोशीदा ज़िंदागानी है |

ज़ाहीदोंको दिखा दिखाके पीओ,
ज़ाहीदोंको दिखा दिखाके पीओ,
और उनके क़रीब लाके पीओ,
ज़िंदगीका सुरूर पाओगे,
पीके सारे ग़म भूल जाओगे |
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हमसे हुए नियाज़ पीता हूं,
है कुछ ऐसाही राज़ पीता हूं,
बैठके सामने ख़ुदाके भी,
रोज़ पढकर नमाज़ पीता हूं |

ज़िंदगानी शराब हो जाए,
ये जवानी शराब हो जाए,
सारी दुनिया हो मयक़दा यारों,
सारा पानी शराब हो जाए !

मैं ख़ुदको खोके-पाके पीता हूं,
एक फ़िजासी बनाके पीता हूं,
लोग पानी मिलाके पीते है,
मैं तो नज़रे मिलाके पीता हूं |

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कल जो पी थी अजी, ये तो उसका नशा है,
तुम्हारी क़सम आज पी ही नही |

आज कुछ तो नशा, आपकी बात का है,
और थोडा नशा, धिमी बरसात का है,
हमें आप यूं ही, शराबी न कही ये,
ये दिलपे असर, तो मुलाक़ात का,
... है मुलाक़ात का |

हिचकींया आ रही है,
ये क्या हो गया है ?
तुम्हारी क़सम आज पी ही नही |

कल जो पी थी अजी.... |१|

लोग कहेते है पीए बैठा हूं,
ख़ुदको मदहोश किये बैठा हूं,
ज़ान बाकी है, वो भी ले लिजे,
दिलको पहेलेही, दिए बैठा हूं |

हम तो मदहोश है, आप जबसे मिले,
आज पी हो तो ज़ालीम, जवानी जले,
यूं ही घबरा गए, डग़मगाने तो दिजे,
देखीये ये तो है, प्यारके सिलसिले,
प्यारके सिलसिले.....
थाम लिजे हमें बस यही इल्तीज़ा है,
तुम्हारी क़सम आज पी ही नही | २|

कल जो पी थी अजी ये तो उसका नशा है,
तुम्हारी क़सम आज पी ही नही |

हां सच है पी ही नही,
के मैंने पी ही नही .....
कल जो पी थी अजी....

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या शायरीबद्दल आणि विजय सिंगच्या बेहद्द काँपोझिशनवर लिहायला मला किमान दोन दिवस लागतील. इन दि मीन टाइम, एंजॉय दि साँग..... इट इज अ हॅवॉक ! (सदर लिंक कुणी डॉ. सुजीत कुमारनी गायलीये पण रंग तोच आहे !)

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