मै और मेरी बेली..
अक्सर ये बाते करते है........ |
तुम ना होती तो कैसा होता?
सचमुच.... तुम ना होती तो कैसा होता?
उस पिझ्झा को मै ना न केहता
वो आईस-क्रीम, मै जी भर के खाता...
मै और मेरी बेली, अक्सर ये बाते करते है,
तुम ना होती तो कैसा होता?
पिछले साल खरीदी मेरी फेवरेट पॅन्ट,
आज हमारा वॉचमन ना पहनता..
मेरे बेल्ट का होल, फिरसे बढाना ना पडता..
मै और मेरी बेली, अक्सर ये बाते करते है...
ये बेली है के या किसी साहुकार का बियाज..
या है किसी नेता की भुख...
या किसी प्रेमी की प्यास,
या किसी की ममता, जो सदा बढती ही जाए...
ये सोचता हु मै कबसे गुमसुम
जबकी मुझको भी ये खबर है,
कि तुम यही हो, हा यही हो
मगर ये दिल है कि कह रहा है
की तुम नही हो, कही नही हो...
मजबुर ये हालात इधर है और बस इधर ही है.
बेली की ये बात इधर है और बस इधर ही है.
केहने को बहुत कुछ है मगर किससे कहे हम
कब तक युही खामोश रहे और सहे हम?
दिल कहता है दुनिया की हर एक रस्म उठा दे
फ्रिज मे पडा हुवा वो "तिरामिसु का पीस" गटक ले...
इतनी तो बढी है बेली, और थोडी बढा दे..
क्यू दिल मे सुलगते रहे, लोगोन्को बता दे
हा, हमको भी बेली है, हमको भी बेली है...
अब दिल मे यही बात इधर भी है, उधर भी है...
- बेली का जलवा :)
('विथ अ पिन्च ऑफ सॉल्ट)
प्रतिक्रिया
28 Sep 2010 - 9:58 pm | पैसा
बर्याच लोकाना हा "जवळचा" अनुभव वाटेल
29 Sep 2010 - 6:42 am | बेसनलाडू
(सुदृढ)बेसनलाडू
29 Sep 2010 - 6:34 am | स्पंदना
ये कहा $$$ आ गये हम, युं ही भात खाते खाते ।
1 Oct 2010 - 12:07 pm | मितान
अपर्णा :))
ये कहां आ गये हम युंही भात खाते खाते
मेरी बेली मे है हरदम वोह चीज पिझ्झा पिघलते !!
( बाकी नंतर.. )
मस्त लेख ऋयाम !
29 Sep 2010 - 6:47 am | सहज
मराठी व कधी कधी हिंदीतुन अभिव्यक्तीसाठीचे संकेतस्थळ :-)
यावरून खूप वर्षापूर्वी पाहीलेल्या एका वाढदिवसाच्या शुभेच्छापत्रावरचा मजकूर आठवला.
दररोज आंघोळ करुन लगेच आरशात बघताना (नैसर्गिक अवस्थेत)
तुला तोच प्रश्न पडतो ना जो प्रत्येक खुन करणार्याला पडतो? - 'नाउ व्हॉट टू डू विथ द बॉडी'?
वाढदिवसाच्या शुभेच्छा!
1 Oct 2010 - 5:53 am | ऋयाम
पैसा, बेसनलाडु (सुदृढ), aparna akshay, सहज,
वाचल्याबद्दल आभार!!
सहज,
खरंच.. 'कधीकधीच...' हां. :)
तो वाढदिवसाचा मजकुर लय भारी! :D
@आभार्स!!!
1 Oct 2010 - 7:06 am | गुंडोपंत
सुंदर जमले आहे.
मजबुर ये हालात इधर है और बस इधर ही है.
बेली की ये बात इधर है और बस इधर ही है.
केहने को बहुत कुछ है मगर किससे कहे हम
कब तक युही खामोश रहे और सहे हम?
अशी वेळ एकदा माझ्यावर बस मध्ये आली होती हो... वेळीच बस थांबल्याने संगमनेरच्या स्थानकात थोडक्यात निभावले!
1 Oct 2010 - 11:49 am | राजेश घासकडवी
आम्हाला लहानपणी पोटोबाचं पत्र नावाचा धडा होता त्याची आठवण आली.
ये बेली है के या किसी साहुकार का बियाज..
हे मस्तच
मात्र अजून थोडी मजा करता आली असती असं वाटलं...
मगर ये दिल है कि कह रहा है
ऐवजी
मगर ये दिल है कि चाहता है
की तुम न ही हो, कही नही हो
कसं वाटेल?
अजून लिहा.
1 Oct 2010 - 12:39 pm | सुहास..
क्या बात है मिंया !! शेरमै तथा बदनपे बडा वजन आया है !!
1 Oct 2010 - 1:08 pm | ३_१४ विक्षिप्त अदिती
झकास! म्हणून बहुतेक पकाकाका विल्यॅस्टीक वापरायला सांगतात.
अवांतरः फक्त बेली म्हटल्यावर मला पुढचा 'ज' न दिसण्याचं दु:ख झालं.
1 Oct 2010 - 2:29 pm | प्राजक्ता पवार
:)
3 Oct 2010 - 9:31 am | ऋयाम
> मगर ये दिल है कि चाहता है
> की तुम न ही हो, कही नही हो
हेही चांगलं आहे हो, चालेल :)
वाचल्याबद्दल सगळ्यांचे आभार्स!
-ऋयाम.
3 Oct 2010 - 12:32 pm | विसोबा खेचर
मस्त रे.. :)
तात्या.
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आमच्या संगीताच्या सार्या व्याख्या अन् अपेक्षा इथे पूर्ण होतात!
9 Oct 2010 - 2:12 pm | ऋयाम
@आभार्स तात्या :)
9 Oct 2010 - 2:15 pm | मराठमोळा
एकदम वास्तविक काव्य!!! ;)