प्रतिभेचे देणे

अनन्त्_यात्री's picture
अनन्त्_यात्री in जे न देखे रवी...
13 Nov 2017 - 2:54 pm

ती ठिणगी होऊन येते
अन वणवा होऊन छळते
ती लकेर लवचिक होते
अन गाण्यातून रुणझुणते

ती कधी निखारा होते
विझुनी मग होते राख
उमलविते त्यातून फूल
मग तिचीच फुंकर एक

ती उल्केसम कोसळते
उखडून दिशांचे कोन
धगधगत्या चित्रखुणांची
ती लिहिते भाषा नविन

जे तरल नि अक्षर ते ते,
जे अथांग, अदम्य ते ते,
जे दूर असूनही भिडते,
जे जटिल तरी जाणवते,
ते तिचेच देणे असते….
…..किती घ्यावे? तरीही उरते !

कविता माझीकवितामुक्तक

प्रतिक्रिया

चांदणे संदीप's picture

13 Nov 2017 - 4:12 pm | चांदणे संदीप

वाह!

Sandy

अनन्त्_यात्री's picture

14 Nov 2017 - 1:41 pm | अनन्त्_यात्री

धन्यवाद!

ज्ञानोबाचे पैजार's picture

14 Nov 2017 - 11:37 am | ज्ञानोबाचे पैजार

सुरेख, तुमची शब्दांवरची हुकूमत वादातीत आहे.
पैजारबुवा,

अनन्त्_यात्री's picture

14 Nov 2017 - 3:44 pm | अनन्त्_यात्री

आपल्या प्रतिसादाबद्दल मनःपूर्वक आभार.

पद्मावति's picture

14 Nov 2017 - 3:09 pm | पद्मावति

खरंच सुरेख.

अनन्त्_यात्री's picture

15 Nov 2017 - 9:14 am | अनन्त्_यात्री

धन्यवाद.

सूड's picture

15 Nov 2017 - 6:24 pm | सूड

आवडलं

यशोधरा's picture

17 Nov 2017 - 1:49 am | यशोधरा

वा!

अनन्त्_यात्री's picture

17 Nov 2017 - 10:17 am | अनन्त्_यात्री

धन्यवाद.

जागु's picture

17 Nov 2017 - 10:33 am | जागु

छान.

अनन्त्_यात्री's picture

21 Nov 2017 - 9:17 am | अनन्त्_यात्री

धन्यवाद.