एकाच कवितेमधून दोन वेळा प्रेरणा मिळाली हे निमित्तमात्र
मग पुढे असं होतं की ..
दोन श्वासातले अंतर वाढत जातं.
डोळ्यामधली चमक विझत जाते.
ओठावरचं हसू निवत जातं...
अग्नीचा स्पर्श ही समजत नाही ..
आणि नातलग लागतात गुण आठवायला..
कुडीतले प्राण निघतात प्रस्थानाला ..
असं होण्या आधी भरभरून जगायचे..
मृत्यूची सय ही निमित्तमात्र..
पैजारबुवा,
प्रतिक्रिया
30 Mar 2019 - 6:25 pm | प्रचेतस
क्या बात बुवा..!
जबरदस्त
31 Mar 2019 - 7:11 am | प्राची अश्विनी
क्लास्स! पैजारबुवा!_/\_
31 Mar 2019 - 7:41 am | धनावडे
सुंदर
31 Mar 2019 - 8:56 am | पाषाणभेद
का रडवतात असे!?
31 Mar 2019 - 9:49 am | मदनबाण
वाह्ह...
मदनबाण.....
आजची स्वाक्षरी :- छम्मा छम्मा बाजे रे मेरी पैजनिया... :- Fraud Saiyaan | 4K |
31 Mar 2019 - 1:43 pm | डॉ सुहास म्हात्रे
वाह !
31 Mar 2019 - 1:57 pm | पद्मावति
_/\_ नि:शब्द
1 Apr 2019 - 4:15 pm | नाखु
गुंता वाढत जाणारी.
आवडली
वाचनमात्र वाचकांची पत्रेवाला नाखु
1 Apr 2019 - 4:31 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
कशातून काय दिसेल कवीला!! __/\__!
2 Apr 2019 - 4:05 am | सोन्या बागलाणकर
वाह!
हा फिलॉसॉफिकल टच आवडला.
2 Apr 2019 - 10:37 am | मनिष
सुरेख!!!