शमशान . . .
मुझे खुद में दिखाई दिए वो,
जिन्हें मैं पागल समझता था !
एक दिन पता चला ,
वह साले बड़े सयाने थे !
धरम की अंधेरी खाइयों मे
सेवादार बनके जीता हू ।
लोग जिन्हे श्रद्धा सुमन कहेते है
उन्हे शराब बनाकर पीता हूँ
आप हसोगे मुझे ,
कहोगे , "वाह क्या सच्चाई देखते हो ! "
मै कभी आपको समझा नही सकूंगा ,
की मुझे झूठ भी कैसे ( ?) दिखाई देता है !?
जिंदगी जीने के इस झमेले मे
अब खुद को कुछ भी कभी नही कहूंगा
जन्मा था इन्सान बन के
फिर इन्सान होकर ही मरूंगा ।
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अतृप्त . . .
प्रतिक्रिया
30 Sep 2024 - 9:37 am | कंजूस
वैतागले का?
एकदम हिंदीत कविता!
3 Oct 2024 - 10:16 pm | चौथा कोनाडा
मराठी भाषेचा विजय विजय असो !
आजच मराठी भाषेला अभिजात भाषेचा दर्जा मिळाल्याबद्दल मिपाकर लेखक, कवि, भटकंतीकार, प्रवासवर्णनकार, मिपावाचक आणि मिपा विशेषांक कार्यकर्ते, संपादक मं आणि मिपा मालकांचे हार्दिक हार्दिक अभिनंदन !