विदेश in जे न देखे रवी... 21 Mar 2016 - 7:45 am पहिल्या प्रेमी गुंतत गेलो सुटणे गुंता विसरत गेलो होती काळी शेजारी ती पण गोरा मी मिरवत गेलो येता जाता हसतच होती सुचता थापा मारत गेलो जुळले सूतहि प्रेमहि जमले प्रेमी तिचिया डुंबत गेलो गडबडलो मी प्रेमात तरी आनंदाला उधळत गेलो .. . प्रेम कवितामुक्त कविताशांतरसकविता प्रतिक्रिया अरेवा! 21 Mar 2016 - 1:12 pm | चांदणे संदीप झकासच! आवडली कविता! प्रत्येक ओळीत दोन शब्द...आवडले! :) Sandy काय काय मस्त प्रयोग चाललेत 21 Mar 2016 - 2:25 pm | अभ्या.. काय काय मस्त प्रयोग चाललेत काव्य विभागात. भारीच. आवडले हे वेगळे सांगणे न लगे. धन्यवाद - 22 Mar 2016 - 5:57 am | विदेश चांदणे संदीप , अभ्या.. - मनापासून धन्यवाद !
प्रतिक्रिया
21 Mar 2016 - 1:12 pm | चांदणे संदीप
झकासच! आवडली कविता!
प्रत्येक ओळीत दोन शब्द...आवडले! :)
Sandy
21 Mar 2016 - 2:25 pm | अभ्या..
काय काय मस्त प्रयोग चाललेत काव्य विभागात.
भारीच. आवडले हे वेगळे सांगणे न लगे.
22 Mar 2016 - 5:57 am | विदेश
चांदणे संदीप , अभ्या.. -
मनापासून धन्यवाद !