प्रणयपंचमी

शैलेन्द्र's picture
शैलेन्द्र in जे न देखे रवी...
10 Sep 2015 - 12:05 am

हळूच मंद मालवे, कालचा नवा शशी,
हळूच धुंद पैंजणे, वाजती मनी कशी...

विरत रात्र विझतसे, विरत ना तरी स्मृती,
फिरत फिरत नेतसे, स्मरत तुज तवप्रती,
तरल धुंद मोहकसे, अननुभुत मधुपिशी..

प्रहर शुक्र चढतसे, बहर प्रणय पंचमी ,
झरत झरत येतसे, मदन कैफ लोचनी ,
धुसर कुंद मधुरसे, सहजतृप्त भावनिशी

निवांत सौख्य रमतसे, सुगंध रक्त चंदनी,
परत परत जातसे, भ्रमित गात्र कोंदणी,
सुखद मंद शारिरसे, अमृतमय यौनरशी..

(या कवितेचे धृवपद व पहिले कडवे वेगळ्या नावाने व वेगळ्या अर्थाने पूर्वप्रकाशित )

भावकविताकविता

प्रतिक्रिया

एस's picture

10 Sep 2015 - 6:22 am | एस

वाह!

प्रचेतस's picture

10 Sep 2015 - 7:11 am | प्रचेतस

अप्रतिम.

पैसा's picture

10 Sep 2015 - 9:07 am | पैसा

खासच!

पद्मावति's picture

10 Sep 2015 - 11:06 am | पद्मावति

सुरेख!

शैलेन्द्र's picture

10 Sep 2015 - 12:35 pm | शैलेन्द्र

धन्यवाद..

निनाव's picture

17 Sep 2015 - 9:27 pm | निनाव

Aprateem!!

मदनबाण's picture

18 Sep 2015 - 3:05 pm | मदनबाण

मस्त...

मदनबाण.....
आजची स्वाक्षरी :- Gajanana... :- Bajirao Mastani

jo_s's picture

20 Sep 2015 - 11:39 am | jo_s

व्वा
मस्त

किसन शिंदे's picture

20 Sep 2015 - 11:45 am | किसन शिंदे

अप्रतिम!

मांत्रिक's picture

20 Sep 2015 - 12:33 pm | मांत्रिक

मस्तच! शृंगाररसाची रंगपंचमी!

शैलेन्द्र's picture

25 Sep 2015 - 8:06 pm | शैलेन्द्र

धन्यवाद

अविनाशकुलकर्णी's picture

25 Sep 2015 - 9:13 pm | अविनाशकुलकर्णी

मस्त

अत्रुप्त आत्मा's picture

25 Sep 2015 - 9:49 pm | अत्रुप्त आत्मा

अप्रतीम...केवळ अप्रतीम!

विरत रात्र विझतसे, विरत ना तरी स्मृती,
फिरत फिरत नेतसे, स्मरत तुज तवप्रती,
तरल धुंद मोहकसे, अननुभुत मधुपिशी..

ये तो लाजव्वाब से भी बढकर है।

प्रत्यक्ष अनुभूती आल्यासारख वाटल सगळं गीतकाव्य वाचताना.
आणि त्या जुन्या "नवीन आज चंद्रमा, नवीन आज यामिनी मनी नवीन भावना, नवेच स्वप्‍न लोचनी !" या गाण्याची तुमच्या गीतकाव्याची पहिली ओळ वाचताच आठवणहि झाली.
ते गीत देतोच इथे ऐकायला..