हळूच मंद मालवे, कालचा नवा शशी,
हळूच धुंद पैंजणे, वाजती मनी कशी...
विरत रात्र विझतसे, विरत ना तरी स्मृती,
फिरत फिरत नेतसे, स्मरत तुज तवप्रती,
तरल धुंद मोहकसे, अननुभुत मधुपिशी..
प्रहर शुक्र चढतसे, बहर प्रणय पंचमी ,
झरत झरत येतसे, मदन कैफ लोचनी ,
धुसर कुंद मधुरसे, सहजतृप्त भावनिशी
निवांत सौख्य रमतसे, सुगंध रक्त चंदनी,
परत परत जातसे, भ्रमित गात्र कोंदणी,
सुखद मंद शारिरसे, अमृतमय यौनरशी..
(या कवितेचे धृवपद व पहिले कडवे वेगळ्या नावाने व वेगळ्या अर्थाने पूर्वप्रकाशित )
प्रतिक्रिया
10 Sep 2015 - 6:22 am | एस
वाह!
10 Sep 2015 - 7:11 am | प्रचेतस
अप्रतिम.
10 Sep 2015 - 9:07 am | पैसा
खासच!
10 Sep 2015 - 11:06 am | पद्मावति
सुरेख!
10 Sep 2015 - 12:35 pm | शैलेन्द्र
धन्यवाद..
17 Sep 2015 - 9:27 pm | निनाव
Aprateem!!
18 Sep 2015 - 3:05 pm | मदनबाण
मस्त...
मदनबाण.....
आजची स्वाक्षरी :- Gajanana... :- Bajirao Mastani
20 Sep 2015 - 11:39 am | jo_s
व्वा
मस्त
20 Sep 2015 - 11:45 am | किसन शिंदे
अप्रतिम!
20 Sep 2015 - 12:33 pm | मांत्रिक
मस्तच! शृंगाररसाची रंगपंचमी!
25 Sep 2015 - 8:06 pm | शैलेन्द्र
धन्यवाद
25 Sep 2015 - 9:13 pm | अविनाशकुलकर्णी
मस्त
25 Sep 2015 - 9:49 pm | अत्रुप्त आत्मा
अप्रतीम...केवळ अप्रतीम!
ये तो लाजव्वाब से भी बढकर है।
प्रत्यक्ष अनुभूती आल्यासारख वाटल सगळं गीतकाव्य वाचताना.
आणि त्या जुन्या "नवीन आज चंद्रमा, नवीन आज यामिनी मनी नवीन भावना, नवेच स्वप्न लोचनी !" या गाण्याची तुमच्या गीतकाव्याची पहिली ओळ वाचताच आठवणहि झाली.
ते गीत देतोच इथे ऐकायला..