रास

नगरीनिरंजन's picture
नगरीनिरंजन in जे न देखे रवी...
27 Mar 2011 - 6:44 am

चांद रात मंद वात
गंध श्वास टाकतो
धुंद साथ उष्ण हात
कंप हृदयी जागतो

नील जल प्रतिबिंब
चंद्र त्यात पाहतो
लुब्ध मुग्ध शुभ्र पुष्प
पारिजात ढाळतो

रक्त ओष्ठ रक्त नेत्र
भ्रमरही मोहतो
मत्त वक्ष पुष्ट गात्र
समीर हाताळतो

एक भास एक ध्यास
प्रेम वह्नी जाळतो
व्यस्त केश भ्रष्ट वेश
मुकुंद रास खेळतो

धूम्र वर्ण पीत वस्त्र
अधर तो चावतो
मीलनातुर झाली राधा
कृष्ण वेड लावतो.

- (पूर्वप्रकाशित)

शृंगारप्रेमकाव्यकविता

प्रतिक्रिया

प्रकाश१११'s picture

27 Mar 2011 - 10:16 am | प्रकाश१११

छान लय,मस्त सूर.
चांद रात मंद वात
गंध श्वास टाकतो
धुंद साथ उष्ण हात
कंप हृदयी जागतो
खूप शुभेच्छा !!

तर्री's picture

27 Mar 2011 - 8:29 pm | तर्री

शांत व शृंगार रस युक्त काव्य आवडले.

स्पंदना's picture

27 Mar 2011 - 8:41 pm | स्पंदना

अं हं ! नगरी?

अतिशय आव्डल ब्वा!

चांद रात मंद वात
गंध श्वास टाकतो
धुंद साथ उष्ण हात
कंप हृदयी जागतो

मस्त कविता आवडली एकदम

प्राजक्ता पवार's picture

28 Mar 2011 - 10:15 pm | प्राजक्ता पवार

कविता आवडली.

मदनबाण's picture

29 Mar 2011 - 7:10 am | मदनबाण

वा... :)