सांज वेडी रंगताना याद यावी का तुझी
आस वेडी या मनाची दाट होते त्या क्षणी..।।
राग जुळता या मनाचे दुर होती अंतरे
गीत फुलवी जिवनाचे सुर देती पाखरे
स्वप्न फुलता हे उद्याचे रात वाटे पाहुणी
आस वेडी या मनाची दाट होते त्या क्षणी..।।
चिञ माझे अंतरीचे रंग भरती ही फुले
गंध ओले चंदनाचे अंतरंगी दरवळे
याचवेळी ही अबोली प्रित दाटे या मनी
आस वेडी या मनाची दाट होते त्या क्षणी..।।
सांज वेडी रंगताना याद यावी का तुझी
आस वेडी या मनाची दाट होते त्या क्षणी..।।
प्रतिक्रिया
9 Oct 2015 - 7:01 pm | मांत्रिक
+१११
10 Oct 2015 - 1:16 am | रातराणी
आवडली!
10 Oct 2015 - 10:17 am | माहीराज
धन्यवाद
11 Oct 2015 - 11:30 am | चांदणे संदीप
माहीराज...
बस एक तुम ही तुम छाये हो तसव्वुरपे..
जरा हटिए कि, और भी खडे है राहोपे!
(पुढल्या वेळी 'त्र' ही नीट काढायचा सराव करून या!)
Sandy
11 Oct 2015 - 11:35 am | बाबा योगिराज
वल्लाह....
11 Oct 2015 - 11:35 am | माहीराज
नक्कीच
11 Oct 2015 - 11:34 am | बाबा योगिराज
माहिराज,
आवड्यास.
11 Oct 2015 - 11:44 am | माहीराज
धन्यवाद
11 Oct 2015 - 3:19 pm | बोका-ए-आझम
गेयताही आहे या कवितेत! चाल लावण्याचा प्रयत्न करता येईल.
11 Oct 2015 - 3:21 pm | जव्हेरगंज
आवडेश!
11 Oct 2015 - 9:32 pm | माहीराज
लवकरच या कवितेचे गाण्यात रुपांतर करतोय.
13 Oct 2015 - 6:55 pm | एक एकटा एकटाच
वाह!!!
15 Feb 2016 - 8:38 pm | एक एकटा एकटाच
आज पुन्हा वाचली
पुन्हा आवडली
15 Feb 2016 - 5:43 pm | एकप्रवासी
मस्त आहे कविता....