उंच उंच झोका जाई
निळ्या आभाळात ।
फिरी येता गोळा होई
जीव काळजात ॥१॥
शैशवात वाटे येई
कवेत आकाश ।
पाय लागता भुईस
कळे तो आभास ॥२॥
घेत झेप याैवनात
जमिनीस सोडी ।
वाऱ्यास जाई कापीत
गगनास जोडी ॥३॥
कुरकुर ही कड्यांची
आताशा जराशी ।
संधीकाली विसावली
लय पश्चिमेशी ॥४॥
त्रिकालातुनी विहार
हिंदोळा घडवी ।
अन् राधेची कृष्णावर
प्रीतही जडवी ॥५॥
प्रतिक्रिया
29 Jul 2020 - 11:44 am | मन्या ऽ
वाह...
31 Jul 2020 - 10:36 am | मी-दिपाली
धन्यवाद _/\_
29 Jul 2020 - 3:47 pm | गणेशा
फोटोसहित शब्द छान वाटले
31 Jul 2020 - 10:36 am | मी-दिपाली
धन्यवाद _/\_
29 Jul 2020 - 4:15 pm | Bhakti
खुप सुंदर रचली आहे.आयुष्याच्या वेगवेगळ्या टप्प्यांवर झोक्यावर झुलण... सुंदरच
29 Jul 2020 - 4:47 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे
सेम असेच बोलतो.
लिहिते राहा. कविता आवडली.
-दिलीप बिरुटे
29 Jul 2020 - 5:18 pm | Bhakti
मी तर गुणगणली खुप वेळा.. मस्तच लिहिलंय
31 Jul 2020 - 10:35 am | मी-दिपाली
धन्यवाद _/\_
घाल घाल पिंगा वार्या या गाण्याची चाल चपखल बसते.
31 Jul 2020 - 10:35 am | मी-दिपाली
धन्यवाद _/\_
2 Aug 2020 - 2:25 am | एस
ह्या पंक्ती फार आवडल्या.
5 Aug 2020 - 5:23 pm | प्राची अश्विनी
फारच सुंदर!
6 Aug 2020 - 4:36 pm | मदनबाण
सुंदर...
मदनबाण.....
आजची स्वाक्षरी :- Avrodh – The Siege Within | SonyLIV Originals |
7 Aug 2020 - 2:21 pm | दीपक११७७
मस्त!
8 Aug 2020 - 12:27 pm | पियुशा
तुझ्या कवितमुळे काव्य विभागाला 4 चाँद लागले:)