मी तृषार्त भटकत असता
मृगजळास भरते आले
मी मला गवसण्या आधी
वैफल्य विकटसे हसले
शब्दांच्या इमल्यापाशी
सावली शोधण्या गेलो
पण शब्दांचे केव्हाचे
धगधगते पलिते झाले
क्षण क्षणास जोडित जाता
वाटले काळ संपेल
पण वितान हे काळाचे
दशदिशा व्यापुनी उरले
घेतली पेरणा 6 Mar 2018 - 2:15 pm | ज्ञानोबाचे पैजार
मी तृषार्त ढोसत असता
मी तृषार्त ढोसत असता
मित्रांस भरते आले
मी काही बोलण्या आधी
सगळे विकटसे हसले
ताटलीच्या तळापाशी
मी दाणे शोधण्या गेलो
पण दाणेतर केव्हाचे
पोटात गायबसे झाले
पेग पेगास जोडित जाता
वाटले रात्र संपेल
पण मिसकॉल हे बायकोचे
दशदिशा दणाणत सुटले
प्रतिक्रिया
3 Mar 2018 - 6:18 pm | एस
अहाहा! अतिशय आवडली कविता!
हे तर खासच!
4 Mar 2018 - 8:25 am | अनन्त्_यात्री
प्रतिसादाबद्दल मन:पूर्वक धन्यवाद!
4 Mar 2018 - 8:31 am | प्राची अश्विनी
सुरेख नेहमीप्रमाणेच;
4 Mar 2018 - 11:10 am | शार्दुल_हातोळकर
छानच !!
4 Mar 2018 - 8:03 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद!
5 Mar 2018 - 9:51 am | ज्ञानोबाचे पैजार
आवडली...
बरेच दिवसांनी वितान हा शब्द भेटला.
पैजारबुवा,
5 Mar 2018 - 10:39 am | अनन्त्_यात्री
"तृषार्त" शब्दातून कोणी "प्रेरणा" "घेतली" तर ? :)
6 Mar 2018 - 2:15 pm | ज्ञानोबाचे पैजार
मी तृषार्त ढोसत असता
मी तृषार्त ढोसत असता
मित्रांस भरते आले
मी काही बोलण्या आधी
सगळे विकटसे हसले
ताटलीच्या तळापाशी
मी दाणे शोधण्या गेलो
पण दाणेतर केव्हाचे
पोटात गायबसे झाले
पेग पेगास जोडित जाता
वाटले रात्र संपेल
पण मिसकॉल हे बायकोचे
दशदिशा दणाणत सुटले
(छोटा छत्री) पैजारबुवा,
7 Mar 2018 - 8:31 am | अनन्त्_यात्री
मस्त!
5 Mar 2018 - 4:07 pm | पुंबा
नेहमीप्रमाणेच सुरेख!!
5 Mar 2018 - 4:23 pm | श्वेता२४
खूपच छान लिहलीय
5 Mar 2018 - 5:31 pm | पैसा
सुरेख कविता
5 Mar 2018 - 11:32 pm | अत्रुप्त आत्मा
वितान मंजे काय?
6 Mar 2018 - 10:19 am | अनन्त्_यात्री
पटल / canopy
6 Mar 2018 - 2:21 pm | पद्मावति
मस्तच. सुरेख कविता.
पैजारबुवा =))
6 Mar 2018 - 10:26 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
सुरेख...
7 Mar 2018 - 8:34 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद.