दत्ता काळे in जे न देखे रवी... 19 Oct 2008 - 11:39 am देवभोळी कष्टवेडी माय माझी शब्द सोपा वाकल्या फांदीत अजूनी सुगरणीचा दक्ष खोपा * * * * * * * कवितावाङ्मय प्रतिक्रिया खुपच सुंदर 19 Oct 2008 - 12:25 pm | शर्मीला सोप्या शब्दाती ल महान आई................ खुपच सुंदर जियो...! 19 Oct 2008 - 4:00 pm | विसोबा खेचर जियो...! क्या बात 19 Oct 2008 - 5:31 pm | अवलिया क्या बात है! मस्त !! सुरेख 19 Oct 2008 - 5:33 pm | बेसनलाडू आवडली. (मातृभक्त)बेसनलाडू आवडली 19 Oct 2008 - 6:00 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे सुंदर कविता. सहमत.. 20 Oct 2008 - 8:23 am | प्राजु +१ - (सर्वव्यापी)प्राजु http://praaju.blogspot.com/ एकच शब्द 19 Oct 2008 - 6:06 pm | दिपोटी एकच शब्द ... अत्युत्तम ! - दिपोटी झक्कास.... 20 Oct 2008 - 1:55 am | फटू आई इतकीच सरळ साधी कविता... सतीश गावडे आम्ही इथेही उजेड पाडतो -> मी शोधतो किनारा... A ship in a harbour is safe, but that is not what ships are built for. मुलगी बापाच्या घरी सुरक्षीत असते पण मुलींचा जन्म त्यासाठी झालेला नसतो. वा! 20 Oct 2008 - 1:38 pm | ऋषिकेश आई इतकीच सरळ साधी कविता... असेच म्हणतो! मस्त -(मातृभक्त) ऋषिकेश छान 20 Oct 2008 - 10:25 am | अनिरुध्द अतिशय बोलकी (गाती) कवीता. चार ओळीत माया, प्रेम ओसंडून वाहातयं असेच लिहीत रहा. छान. जियो. अप्रतिम 20 Oct 2008 - 1:45 pm | ध्रुवतारा ध्रुवतारा मित्रा जिन्कलस !!!!! बालकराम 20 Oct 2008 - 7:12 pm | रामदास सुंदर कविता.आवडली. मस्तच 20 Oct 2008 - 7:24 pm | सखाराम_गटणे™ मस्तच सह्हीच रे! 20 Oct 2008 - 7:34 pm | मनस्वी सह्हीच रे! मनस्वी धन्यवाद 20 Oct 2008 - 9:23 pm | दत्ता काळे कवितेला प्रतिसाद देणार्या व प्रतिसाद न देऊ शकलेल्या स र्वांचे आभार सहीच.. फार 20 Oct 2008 - 10:29 pm | भाग्यश्री सहीच.. फार सुंदर.. सुरेख रे बाळकरामा! 20 Oct 2008 - 10:39 pm | चतुरंग अल्पाक्षरी, मनोहारी काव्य! :) चतुरंग खूप वर्षांनी वाचली. 23 Dec 2017 - 12:15 am | राघव खूप वर्षांनी वाचली. अत्त्युत्तम! क्लास!! :-)
प्रतिक्रिया
19 Oct 2008 - 12:25 pm | शर्मीला
सोप्या शब्दाती ल
महान आई................
खुपच सुंदर
19 Oct 2008 - 4:00 pm | विसोबा खेचर
जियो...!
19 Oct 2008 - 5:31 pm | अवलिया
क्या बात है!
मस्त !!
19 Oct 2008 - 5:33 pm | बेसनलाडू
आवडली.
(मातृभक्त)बेसनलाडू
19 Oct 2008 - 6:00 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे
सुंदर कविता.
20 Oct 2008 - 8:23 am | प्राजु
+१
- (सर्वव्यापी)प्राजु
http://praaju.blogspot.com/
19 Oct 2008 - 6:06 pm | दिपोटी
एकच शब्द ...
अत्युत्तम !
- दिपोटी
20 Oct 2008 - 1:55 am | फटू
आई इतकीच सरळ साधी कविता...
सतीश गावडे
आम्ही इथेही उजेड पाडतो -> मी शोधतो किनारा...
A ship in a harbour is safe, but that is not what ships are built for.
मुलगी बापाच्या घरी सुरक्षीत असते पण मुलींचा जन्म त्यासाठी झालेला नसतो.
20 Oct 2008 - 1:38 pm | ऋषिकेश
असेच म्हणतो! मस्त
-(मातृभक्त) ऋषिकेश
20 Oct 2008 - 10:25 am | अनिरुध्द
अतिशय बोलकी (गाती) कवीता. चार ओळीत माया, प्रेम ओसंडून वाहातयं
असेच लिहीत रहा.
छान. जियो.
20 Oct 2008 - 1:45 pm | ध्रुवतारा
ध्रुवतारा
मित्रा जिन्कलस !!!!!
20 Oct 2008 - 7:12 pm | रामदास
सुंदर कविता.आवडली.
20 Oct 2008 - 7:24 pm | सखाराम_गटणे™
मस्तच
20 Oct 2008 - 7:34 pm | मनस्वी
सह्हीच रे!
मनस्वी
20 Oct 2008 - 9:23 pm | दत्ता काळे
कवितेला प्रतिसाद देणार्या व प्रतिसाद न देऊ शकलेल्या स र्वांचे आभार
20 Oct 2008 - 10:29 pm | भाग्यश्री
सहीच.. फार सुंदर..
20 Oct 2008 - 10:39 pm | चतुरंग
अल्पाक्षरी, मनोहारी काव्य! :)
चतुरंग
23 Dec 2017 - 12:15 am | राघव
खूप वर्षांनी वाचली. अत्त्युत्तम! क्लास!! :-)