वसकन वरड्या. गपचिप पड्या. फिर मुझे बोल्या " सट्या क्या रे?"
मै धडपडके ऊठ्या. खुडची पे बैठ्या. और ऊसकू बोल्या " खडा क्यों रे? बैठ ना"
"ये भोक तेरेके दिखता क्या रे?" आकबऱ्या छत को ईशारा करके बोल्या.
अब साला मै भी ऊठके ऊसे ढुंढने लगा. रामजाने कैसा भोक. लेकीन वो कहता है, तो देख तो लू.
"किधर रे किधर? मेरेको तो कुछ दिखता नै" मै मुंडी ऊपर घुमाके बारीक नजरसे देख्या.
"अैसा कैसा रे बावळट तू? वो ऊधर मेरे ऊंगलीके ऊपर देख. है क्या नै?"
मै ईधर से ऊधर गया, फिर ऊधर से भिताड के पास गया. आंखे फाड फाड के ऊपर देखा. पर ऊधर घंटा कुछ भी नही था. लेकीन आकबऱ्या बात मानके ही छोडेगा. यक नंबर की पोचेली चीज. ऊसे झूटमूट का ही बोलना पड्या,
"हा, दिख्या रे, ऊधरीच ना?"
आकबऱ्या मुंडी ऊपर घुमा के अलग अलग अँगल से छत को देखता रहा. फिर पोझिशन बदलके कोपरे मे जाके ऊपर ध्यान से देखने लगा.
"सच मे दिख्या क्या रे? मस्करी तो नै कऱ्हा ना?" आकबऱ्या डाउट खाया. मुंडी ऊपर ही रखके मेरेकू बोल्या.
"नै रे , कसम से दिख्या, लेकिन वो कैसा भोक? इत्ता क्यो ढुंढरा ऊसे?" नजाने साला अब क्या सुनायेगा.
"पिछले साल ना जब मै ईधर आया था...." वो शुरु हो गया.
"इत्ता डिप मे मत सुना रे, थोडा शॉटकट मे बोल" मेरेको वैसेभी आलस आ गया था. सतरंजीपे पड्या ही था की ये आकबऱ्या बीच मे आ टपका. अब साला पुरी रात फोकट का टायंपास.
"इत्ता सिंपल नै रे वो, शुरु से ही सुनना पडेगा, नै तो सब ऊपर से जायेगा"
साला इत्ते से भोक के लिये इसका पूरी स्टोरी अब सुनना पडेगा. मै फिर से सतरंजीपे पड्या और बोल्या,
" हा बोल क्या कह रहा था तू?"
" "पिछले साल ना जब मै ईधर आया था...."
क्रमशः
(अपवादात्मक एखादा धागा ईतर भाषेमध्ये आला तर त्यास 'अभय' द्याल अशी अपेक्षा)
प्रतिक्रिया
9 Dec 2015 - 10:49 pm | निनाव
Sahich waatle..:))
College madhil kaahi characters aathavle. :)
9 Dec 2015 - 10:59 pm | खेडूत
:)
तशीही ही मराठीच आहे की! गावोगावी ऐकायला मिळते..
पुभाप्र!
9 Dec 2015 - 11:07 pm | बाबा योगिराज
ऐसे कामा करे तो ही च अपन फेमस होते, कते...
तुमे ळीवो णा. हमे है पढ़नेकु.
वो जेपी भौ है णा, वो अपणा धोस्त है. उन्नो अभय क्या सन्नी भाई कु ढाई किलो के के हात के सात धरके आनेंगे. तुम्हे ळीवो.
जेपी भौ तुमें आगे बढ़ो,
मई आराच्
;-)
9 Dec 2015 - 11:13 pm | आदूबाळ
वसकन वरड्या | गपचिप पड्या | फिर मुझे बोल्या | " सट्या क्या रे?" ||
धडपडके ऊठ्या | खुडची पे बैठ्या | और ऊसकू बोल्या |" खडा क्यों रे? ||
आकबऱ्या छत को | ईशारा करके बोल्या | "ये भोक तेरेको" | दिखता क्या रे?" ||
जव्हेरभाऊ, भाषेबरोबर फॉर्मचेही प्रयोग करा. मस्त मजा येते!
9 Dec 2015 - 11:22 pm | आनंद कांबीकर
तुमकु, ये नव्या नव्या आयड्या कहासे आत्या? ज़रा बताव तो भौ?
तुमारा ये नायावाला पढके मजा आया भौ.
10 Dec 2015 - 12:39 pm | नाखु
इधर उधरकी (चिपकाने)वाले बातांसे, ये एक्दम वंटास है रे !!!
बिन्दास बोल्ते जा फिकर नै करनेका.
नाखु चिंधी
चिमण हटेला गॅंग
10 Dec 2015 - 1:20 pm | चांदणे संदीप
पुभाप्र!
10 Dec 2015 - 3:30 pm | नाव आडनाव
:)
लिवा पुढं.
10 Dec 2015 - 8:45 pm | एक एकटा एकटाच
मजा आया
वाच के
11 Dec 2015 - 8:59 pm | जव्हेरगंज
थँक्यु रे वाचक लोगो!
बोलेतो इसका अगला भाग आपण जरुर लिखेगा!
11 Dec 2015 - 9:56 pm | पैसा
मुसलमानी बोली!
12 Dec 2015 - 4:01 pm | बोका-ए-आझम
सबसे पैले मेहमूद भाईजान पापिलवार किये रहे। और लिखाई मे बोले तो फिर अपुनके जवेरभौकाच नाम दिखता ना मेरेको! ऐसा और आन दो! ये ऐसी जबान सुनके बडी करारी ठनठन हो रही मियां!