ज्योति अळवणी in जे न देखे रवी... 8 Oct 2015 - 12:55 am हां पावसाळी गारवा तुझा सहवास हवा हवा उन्हाच्या त्या काहिलीला स्पर्श हळवा नवा नवा जल भरल्या मेघानाही हळूच स्पर्शे गारवा तप्त झाल्या निळाईला स्पर्श हळवा नवा नवा आतुरलेल्या धरेलाही स्पर्श जीवनाचा हवा मोहरुन उठली ती ही जाणून स्पर्श हळवा नवा प्रेम कविताकविता प्रतिक्रिया छान आहे! आवडली! 8 Oct 2015 - 1:06 am | रातराणी छान आहे! आवडली! भंडल , 8 Oct 2015 - 9:11 pm | भैड्या भंडल , छान. 9 Oct 2015 - 10:47 am | शिव कन्या छान. वा! वा! छान 9 Oct 2015 - 2:56 pm | मनीषा वा! वा! छान जीवाचा कालवा, 9 Oct 2015 - 3:06 pm | खटपट्या जीवाचा कालवा, मामाला बोलवा, माहीमचा हलवा, कालवा बोलवा बोलवा कालवा आता अत्यंत हीण प्रतिसाद अशी शेरेबाजी करु नका
प्रतिक्रिया
8 Oct 2015 - 1:06 am | रातराणी
छान आहे! आवडली!
8 Oct 2015 - 9:11 pm | भैड्या
भंडल ,
9 Oct 2015 - 10:47 am | शिव कन्या
छान.
9 Oct 2015 - 2:56 pm | मनीषा
वा! वा! छान
9 Oct 2015 - 3:06 pm | खटपट्या
जीवाचा कालवा,
मामाला बोलवा,
माहीमचा हलवा,
कालवा बोलवा
बोलवा कालवा
आता अत्यंत हीण प्रतिसाद अशी शेरेबाजी करु नका