मित्रांनो !
या माझ्या अत्यंत आवडत्या कविता आहेत. या मनाला छान उभारी देतात. वाचुन बघा कदाचित तुम्हाला ही या आवडतील ! आणि हो तुमच्या कडे पण या थीम च्या कविता असतीलच तर प्लिज शेअर करा !
१) कविराज कुसुमाग्रज यांची रचना
म्यानातून उसळे तलवारीची पात
वेडात मराठे वीर दौडले सात
ते फिरता बाजूस डोळे, किंचित ओले
सरदार सहा सरसावुनि उठले शेले
रिकबीत टाकले पाय, झेलले भाले
उसळले धुळीचे मेघ सात निमिषात
आश्चर्यमुग्ध टाकून मागुती सेना
अपमान बुजविण्या सात अर्पुनी माना
छावणीत शिरले थेट भेट गनिमांना
कोसळल्या उल्का जळत सात दर्यात
खालून आग, वर आग, आग बाजूंनी
समशेर उसळली सहस्त्र क्रुर इमानी
गदीर्त लोपले सात जीव ते मानी
खग सात जळाले अभिमानी वणव्यात
दगडावर दिसतील अजूनि तेथल्या टाचा
ओढयात तरंगे अजूनि रंग रक्ताचा
क्षितिजावर उठतो अजूनि मेघ मातीचा
अद्याप विराणी कुणी वार्या्वर गात
वेडात मराठे वीर दौडले सात.
वेडात मराठे वीर दौडले सात.
२ ( गुलाल या अनुराग कश्यप च्या चित्रपटातील एक गीत(?)पियूष मिश्रा यांची रचना )
आरंभ है प्रचंड बोले मस्तको के झुंड ,आज जंग की घडी की तुम गुहार दो.
आन, बान, शान या के जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो.
मन करे सो प्राण दे जो मन करे सो प्राण ले, वही तो एक सर्वशक्तीमान है कृष्ण की पुकार है ये भागवन का सार है के युध्द ही तो वीर का प्रमाण है.
कौरवो की भीड हो या पांडवो का नीड़ हो,जो लढ सका वो ही तो महान है.
जीत की हवस नही ? किसी पे कोइ वश नही? क्या जिंदगी है ठोकरो पे मार दो.
मौत अंत है नही तो मौत से भी क्यो डरे, ये जाके आसमाँन मे दहाड़ दो.
हो दया का भाव या के शौर्य का चुनाव चुनाव या के हार का वो घाव तुम ये सोच लो.
या के पुरें भाल पर जलाँ रहे विजय का लाल , लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो.
रंग केसरी हो, या मृदंग केसरी हो, या के केसरी हो ताल तुम ये सोच लो.
जिस कवि की कल्पना मे जिंदगी हो प्रेमगीत उस कवि को आज तुम नकार दो.
भीगती नसों मे आज, फ़ुलती रगों मे आज ,आग की लपट का तुम बखार दो.
३ ) शायर-ए-इन्किलाब जोश मलीहाबादी यांची रचना.
क्यो हिन्द का जिन्दाँ काँप रहा है , गुंज रही है तकबीरे.
उकताए है शायद कुछ कैदी और तोड रहे है जंजीरे.
जिन्दाँ = तुरुंग तकबीरें = जयनाद
दीवारों के नीचे आ-आ क्रर युं जमा हुए है जिन्दानी.
सीने मे तलातुम बिजली का, आंखो मे झलकती शमशीरें.
जिन्दानी = कैदी , तलातुम= भरती, पुर, बाढ
भुको की नजर मे बिजली है, तोपों के दहाने ठंडे है
तकदीर के लब को जुम्बिश है, दम तोड रही है तदबीरे.
जुम्बिश = हालचाल,कंपन .तदबीरें = व्यवस्था (जुलुमी)
ऑखो मे गदा की सुर्खी है, बेनुर है चेहरा सुलताँ का.
तखरीब ने परचम खोला है, सिजदे मे पडी है तामीरें
गदा= भिकारी , बेनुर= निस्तेज, तखरीब=विनाश, तामीरें=उद्दंडताए
क्या उनको खबर थी, ज़ेरोजबर रखते थे जो रुहे-मिल्लत को.
इक रोज इसी बेरंगी से, झलकेंगी हजारो तस्वीरें.
जेरोजबर = नियंत्रणात , रुहे-मिल्लत = राष्ट्राची आत्मा
क्या उनको खबर थी, होठो पर जो कुफ़्ल लगाया करते थे
इक रोज इसी खामोशी से, ट्पकेंगी दह्कती तक़रीरें
कुफ़्ल = कुलुप / ताला , तक़रीरें = वक्तव्ये
संभलो ! कि वो जिन्दाँ गुंज उठा, झपटो ! कि वो कैदी छुट गए.
उठ्ठो ! कि वो बैठि दिवारे , दौडो ! के वो टुटि जंजीरें.
प्रतिक्रिया
28 Oct 2013 - 4:12 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे
गुलफिशानी आपले लेखन या धाग्यात टाकता का ?
-दिलीप बिरुटे