एक गाणे दूरवरुनी, निशिदिनी झंकारते
पैलतीरावरुनी काही ऐलतीरी आणते
हृदयस्पंदी ताल त्याचा, राग त्याचा अनवट
भिनत जातो नाद, मग अनुनाद येतो गर्जत
लय अशी अलवार मजवर प्राणफुंकर घालते
रोमरोमातून काही तरल मग ओसंडते
मुक्तछंदी शब्द, त्यांच्या सावल्या धूसर जरी
अर्थ उलगडती नवेसे ऐकले कितिही तरी
प्रतिक्रिया
19 Mar 2018 - 7:36 pm | प्रचेतस
सुंदर
21 Mar 2018 - 10:07 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद!
21 Mar 2018 - 10:15 am | यशोधरा
सुंदर!
21 Mar 2018 - 3:59 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
व्वाह..
21 Mar 2018 - 7:15 pm | चित्रगुप्त
कविता आवडली, आणि हे आठवले.
21 Mar 2018 - 7:36 pm | प्राची अश्विनी
सुंदर
21 Mar 2018 - 7:37 pm | प्राची अश्विनी
सुंदर
22 Mar 2018 - 12:14 pm | अनन्त्_यात्री
सर्वांना धन्यवाद.
23 Mar 2018 - 1:42 pm | पुंबा
अतीशय अलवार कविता!
23 Mar 2018 - 5:22 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद!