अनन्त्_यात्री in जे न देखे रवी... 1 Apr 2017 - 5:09 pm मध्यरात्री गजबजावे नभ वितळत्या चा॑दण्याने भरुनी जावा ओ॑जळीचा चषक त्या फेनिल प्रभेने मध्यरात्री सळसळावे बेट पिवळे केतकीचे भरुनी जावे आसम॑ती ग॑ध थरथरत्या तृणांचे मध्यरात्री कुजबुजावा मेघ बिलगुनी पर्वता त्या ध्वनीने विरत जावी दाट गहिरी शा॑तता मुक्त कविताकविता प्रतिक्रिया सुरेख! 2 Apr 2017 - 11:51 am | पद्मावति सुरेख! वितळते चांदणे, त्याची फेनील प्रभा, ओन्जळीचा चषक ..आहाहा!!! केवळ आणि केवळ अफलातून! 'गंध थरथरत्या तृणांचे' ऐवजी 2 Apr 2017 - 12:04 pm | एस 'गंध थरथरत्या तृणांचे' ऐवजी 'गुज थरथरत्या तृणांचे' असे केले तर? 'गंध थरथरत्या तृणांचे' ऐवजी 2 Apr 2017 - 12:04 pm | एस 'गंध थरथरत्या तृणांचे' ऐवजी 'गुज थरथरत्या तृणांचे' असे केले तर? मस्त.. फार आवडली.. 3 Apr 2017 - 3:43 pm | पुंबा मस्त.. फार आवडली.. धन्यवाद. 10 Apr 2017 - 2:40 pm | अनन्त्_यात्री सौरा, पद्मावती धन्यवाद. मध्यरात्री गुणगुणावा एक अर्धा 14 Apr 2017 - 3:01 am | सत्यजित... मध्यरात्री गुणगुणावा एक अर्धा फोल मिसरा अन् पहाटे शेर व्हावा,सत्य-सुंदर खोल-गहिरा! कवितेला कवितेने मिळणारी दाद............ 16 Apr 2017 - 5:54 pm | अनन्त्_यात्री ही खरी दाद..! सुंदर !!!! 16 Apr 2017 - 11:12 pm | मितान सुंदर !!!! कविता आणि प्रतिसादातील ओळी !! ___/\___ 17 Apr 2017 - 12:34 am | सत्यजित... ___/\___ अप्रतिम.. जियो.. 17 Apr 2017 - 10:45 am | पुंबा अप्रतिम.. जियो.. धन्यवाद! 17 Apr 2017 - 2:57 pm | सत्यजित... धन्यवाद! सत्यजित, हा बदल कसा वाटतो? 17 Apr 2017 - 2:15 pm | अनन्त्_यात्री मध्यरात्री गुणगुणावा एक अर्धा फोल मिसरा अन् पहाटे शेर व्हावा,स ह ज-सुंदर खोल-गहिरा! बदल तसा सहजच आहे,काहीच हरकत 17 Apr 2017 - 2:50 pm | सत्यजित... बदल तसा सहजच आहे,काहीच हरकत नाही! आयुष्याच्या कवितेला पूर्णता देणाऱ्या अंतिम सत्याशी मी तो शेर जोडू पाहत होतो! मितान, सत्यजित धन्यवाद! 17 Apr 2017 - 10:41 am | अनन्त्_यात्री मितान, सत्यजित धन्यवाद! वाह!! 21 Apr 2017 - 7:43 pm | प्रीत-मोहर वाह!! प्रीत-मोहर, धन्यवाद! 22 Apr 2017 - 4:48 pm | अनन्त्_यात्री प्रीत-मोहर, धन्यवाद!
प्रतिक्रिया
2 Apr 2017 - 11:51 am | पद्मावति
सुरेख!
वितळते चांदणे, त्याची फेनील प्रभा, ओन्जळीचा चषक ..आहाहा!!! केवळ आणि केवळ अफलातून!
2 Apr 2017 - 12:04 pm | एस
'गंध थरथरत्या तृणांचे' ऐवजी 'गुज थरथरत्या तृणांचे' असे केले तर?
2 Apr 2017 - 12:04 pm | एस
'गंध थरथरत्या तृणांचे' ऐवजी 'गुज थरथरत्या तृणांचे' असे केले तर?
3 Apr 2017 - 3:43 pm | पुंबा
मस्त.. फार आवडली..
10 Apr 2017 - 2:40 pm | अनन्त्_यात्री
सौरा, पद्मावती धन्यवाद.
14 Apr 2017 - 3:01 am | सत्यजित...
मध्यरात्री गुणगुणावा एक अर्धा फोल मिसरा
अन् पहाटे शेर व्हावा,सत्य-सुंदर खोल-गहिरा!
16 Apr 2017 - 5:54 pm | अनन्त्_यात्री
ही खरी दाद..!
16 Apr 2017 - 11:12 pm | मितान
सुंदर !!!!
कविता आणि प्रतिसादातील ओळी !!
17 Apr 2017 - 12:34 am | सत्यजित...
___/\___
17 Apr 2017 - 10:45 am | पुंबा
अप्रतिम.. जियो..
17 Apr 2017 - 2:57 pm | सत्यजित...
धन्यवाद!
17 Apr 2017 - 2:15 pm | अनन्त्_यात्री
मध्यरात्री गुणगुणावा एक अर्धा फोल मिसरा
अन् पहाटे शेर व्हावा,स ह ज-सुंदर खोल-गहिरा!
17 Apr 2017 - 2:50 pm | सत्यजित...
बदल तसा सहजच आहे,काहीच हरकत नाही!
आयुष्याच्या कवितेला पूर्णता देणाऱ्या अंतिम सत्याशी मी तो शेर जोडू पाहत होतो!
17 Apr 2017 - 10:41 am | अनन्त्_यात्री
मितान, सत्यजित धन्यवाद!
21 Apr 2017 - 7:43 pm | प्रीत-मोहर
वाह!!
22 Apr 2017 - 4:48 pm | अनन्त्_यात्री
प्रीत-मोहर, धन्यवाद!