क्षण कोवळ्या उन्हाचा लेवून नीळकंठी..
अवकाश व्यापणारी दृष्टी कुठून येते?
जन्मांत गांठ जुळण्या क्षणमात्रही पुरेसा..
मग रुक्ष भावनांची गर्दी कुठून येते?
स्वप्नांस जागवी जो.. क्षण तोच अंतरंगी
निमिषात सर्वव्यापी ऊर्मी कुठून येते?
अवशेष संस्कृतीचे दिसतात जागजागी..
क्षणात शेवटाची प्रगती कुठून येते?
--
एका क्षणात सारे लाघव्य संपलेले..
शब्दांस धार माझ्या इतकी कुठून येते?
राघव
प्रतिक्रिया
5 Aug 2016 - 11:12 pm | रातराणी
व्वा क्या बात!
6 Aug 2016 - 3:41 pm | यशोधरा
क्या बात! सुर्रेख!
6 Aug 2016 - 3:46 pm | प्रचेतस
सुंदर
6 Aug 2016 - 5:16 pm | पैसा
सुरेख!
6 Aug 2016 - 6:35 pm | Bhagyashri sati...
छान
6 Aug 2016 - 7:06 pm | चांदणे संदीप
मस्तच! आवडली कविता!
Sandy
7 Aug 2016 - 2:31 am | राघव
प्रतिसादांबद्दल सगळ्यांचे आभार!:)
संपादक, कृपया शेवटून दुसर्या कडव्यात झालेला टायपो दुरुस्त करावा ही विनंती.
7 Aug 2016 - 5:41 am | अत्रुप्त आत्मा
व्वॉव!
7 Aug 2016 - 10:59 pm | ज्योति अळवणी
छान आहे