दाट दाट झाकोळली, आज आभाळाची काया
गूज धरितीशी करण्या, होई अनावर तो राया
भारावला आसमंत सारा, स्पर्श होताच मखमली
स्तब्ध होऊनी ऐकते, ती आर्जव अंतरातली
का उठते वादळ? तिच्या आसपास उडे पाचोळा
कुणी सांगा त्यांना, हा त्रुप्तिचा अबोल सोहळा
किती काळाचा विरह बाई, कसा सोसते शांत
तोही विसरून भान, मग जाई तिच्या कुशीत
बोले काही क्षणांचा सहवास ठेव माझी आठवण
कसा सोडवते ग हात, डोळ्यात पाऊस साठवून?
प्रतिक्रिया
24 Jul 2015 - 1:45 pm | एक एकटा एकटाच
मस्त मस्त मस्त!!!!!!!!
24 Jul 2015 - 10:35 pm | चुकलामाकला
सुंदर!
24 Jul 2015 - 10:45 pm | जडभरत
सुंदर!!! रोमँटीक!!!
24 Jul 2015 - 10:50 pm | अत्रुप्त आत्मा
छान!
25 Jul 2015 - 8:04 am | मनीषा
सुंदर!
25 Jul 2015 - 11:01 am | यशोधरा
सुरेख..
वा, वा..
25 Jul 2015 - 2:29 pm | पद्मावति
सुंदर कवीता.
25 Jul 2015 - 3:31 pm | एस
मस्त आहे कविता!
11 Aug 2015 - 6:08 pm | राघव
छान कल्पना. पु.ले.शु.