देवा ढळो नेदी | माझी चित्त वृत्ती |
सदा पाहो दिठी | रूप तुझे ||
कष्टी हा संसार | व्यथाही अपार |
तरावया पार | हात दे गा ||
कर्तव्य स्मरून | राखावे ते धन |
परी अंत: करण| तुज पाशी ||
कटू बोल घेता | स्थिर ठेवी चित्ता |
तव नाम घेता | शांत करी ||
देवा तुझे चरणी | आलो सर्व हरोनी |
मज दया करोनी | सांभाळावे ||
- सागर लहरी २५.६.२०१०
प्रतिक्रिया
5 Jul 2010 - 12:31 pm | पाषाणभेद
फारच छान अभंग आहे,

सागर लहरी महाराज की जय!
मधुमेहा विरुद्ध लढा
माझी जालवही
5 Jul 2010 - 12:45 pm | यशोधरा
सुरेख!
5 Jul 2010 - 2:18 pm | रामदास
छान अभंग झाला आहे.
परी अंत: करण| तुज पाशी || क्या बात है ?
11 Jul 2010 - 1:07 pm | सागरलहरी
माझ्या लिखाणाला मनःपूर्वक दाद दिल्या बद्दल धन्यवाद.
11 Jul 2010 - 7:39 pm | नावातकायआहे
वा! माउली! वा!
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11 Jul 2010 - 8:50 pm | भाग्यश्री कुलकर्णी
फार छान जमला आहे अभंग.