मे भी एक बाप हूँ........
वो था तो कोई गम न था।
नही है तो आँखे नम होती है।
उसकी यादोमे अक्सर राते
गमगीन होती है।
नसीहत जो कभी
मुसीबत लगती थी।
आज वही मुसीबत मे
नसीहत लगती है।
रोकता था टोकता था।
अक्सर मन सोचता था
ये ऐसा क्युं है।
आज नही है तो दिल
उसीको खोजता क्युं है।
बरगद का साया था।
हर राझ सिखाया था।
परवरीश मे जिसने
अपना तन मन धन गवांया था।
था वो तो
हर मुकाम मुक्कमल हुआ।
जिंदगी के हर पादान पर
पहाड सा खडा हुआ।
बाप बनके देखो
बाप क्या चिज होती है।
उसकी यादोमे आज भी
आँखे नम होती है।
मै भी एक बाप हूँ।
आज भी कमी महसुस होती है।
कभी अकेला होता हूँ
तो अटलजी की
कवीता याद आती है।
" उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालो
अब गोबिन्द न आयेंगे।"
16-12-2020
प्रतिक्रिया
27 Apr 2021 - 4:37 pm | रंगीला रतन
क्या बात, क्या बात, क्या बात!