भुभूक्षीता सम विषय छेडु
यथातथा ती यमके जोडु
कुंथुनी मग ते शिळकट पाडू
अनाकलनीय नवकाव्य कंडु
कवन जंते उदरी माझ्या
विचार कल्पना असती ताज्या
परी शब्दांसव मेळ ना साधे
मळमळ मनात करती गमजा
बहु प्रयत्नांती सिद्ध जाहलो
झरझर लेखणी मी पाझरलो
मळकट तावावरती शाई ,
फुटत फुटत मी काव्य प्रसवलो
नवकवी
कंडुदास
प्रतिक्रिया
6 Apr 2019 - 1:09 am | पाषाणभेद
उत्तम लिहीले की. का उगाच कमी लेखता?
6 Apr 2019 - 7:28 am | दुर्गविहारी
छान!
6 Apr 2019 - 7:47 am | प्रमोद देर्देकर
गुरुजी ओ sss गुरुजी ! !
कुठं हात तुम्ही
इकडे बघ तुमची कुंथुनी शब्द चोरलाय या नवकवींनी .
लवकर या बरं !
6 Apr 2019 - 8:52 am | प्रचेतस
=))
खतरनाक
6 Apr 2019 - 10:59 am | अमरेंद्र बाहुबली
मस्त