विव्हळतं तळ...
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नखातली डोक्यात..
झणझण जाते कळ...!
डोळ्यातलं ओठात..
विव्हळतं तळ...!
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टीप टीप वेदनेत..
कट्यारीची धार...!
थेंब थेंब ओघळात..
तेजाब आर-पार...!
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फसफस जाळत..
खोल खोल जाते घळ...!
भसभस उफाळत..
रसरसता ये जाळ...!
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स्वाती फडणीस..... २३-१२-२००८
प्रतिक्रिया
24 Dec 2008 - 4:28 pm | विश्वजीत
अबब.
24 Dec 2008 - 5:13 pm | स्वाती फडणीस
हा प्रतिसाद खूप आवडला
24 Dec 2008 - 7:11 pm | अमोल जाधव
खरच सुन्दर, पण बर्याच प्रतिक्रिय मनात दबुन थेवाव्या लागतात.