भगवंत..!!
भुकेल्यास देई अन्न,
दुर्बलास धीर,
आंधळ्याची काठी होई,
तोच खरा थोर...
दीनजन सेवेसाठी,
झिजवी "तो" शरीर,
याचकासि कर्ण होई,
तोच खरा थोर...
तान्हुल्यास क्षीर देई,
तृषार्तास नीर,
कुणा द्रौपदीस चीर देई,
तोच खरा थोर...
अनाथांची होई माय,
शत्रुपुढे वीर,
पतितांना उद्धरुन नेई,
तोच खरा थोर...
कुणी म्हणती गुरु त्याला,
कुणी म्हणे संत,
सर्वांतरी तोच आहे,
माझा भगवंत.....!!!
जयगंधा..
२४-२-२०२१.
प्रतिक्रिया
27 Feb 2021 - 9:38 pm | गणेशा
तान्हुल्यास क्षीर देई,
तृषार्तास नीर,
कुणा द्रौपदीस चीर देई,
तोच खरा थोर...
भारी..
4 Mar 2021 - 1:24 pm | Jayagandha Bhat...
धन्यवाद
1 Mar 2021 - 12:27 pm | राघव
चांगली आहे रचना. आवडली.
4 Mar 2021 - 1:22 pm | Jayagandha Bhat...
धन्यवाद
1 Mar 2021 - 8:53 pm | Bhakti
सर्वांतरी तोच आहे,
माझा भगवंत.....!
4 Mar 2021 - 1:23 pm | Jayagandha Bhat...
धन्यवाद