अनन्त्_यात्री in जे न देखे रवी... 29 Aug 2020 - 8:42 pm कोलाहलात गर्दीच्या एकांत मी कवळतो अंधारून येता मीच अंतर्बाह्य झळाळतो रिक्ततेच्या डोहामध्ये सदा सचैल डुंबतो शून्य असूनही थेट अनंताशी झोंबी घेतो आठवता आठवता पुन्हा त्याला विसरतो दशदिशा कोंदून जो दहा अंगुळे उरतो मुक्त कवितामुक्तक प्रतिक्रिया वाह! 30 Aug 2020 - 12:20 pm | चांदणे संदीप अप्रतिम रचना. सं - दी - प रिक्ततेच्या डोहामध्ये 30 Aug 2020 - 2:32 pm | Bhakti रिक्ततेच्या डोहामध्ये सदा सचैल डुंबतो शून्य असूनही थेट अनंताशी झोंबी घेतो **सुंदर मस्त... आवडली 31 Aug 2020 - 8:43 am | ज्ञानोबाचे पैजार भूजल तेज समीरख रवि शशि काष्ठादिकीं असे भरला। स्थिरचर व्यापुनि अवघा तो जगदात्मा दशांगुळे उरला - (मोरोपंत) पैजारबुवा, संदीप, भक्ती, माऊली 1 Sep 2020 - 5:34 pm | अनन्त्_यात्री प्रतिसादाबद्दल धन्यवाद शून्य असूनही थेट 1 Sep 2020 - 5:36 pm | गणेशा शून्य असूनही थेट अनंताशी झोंबी घेतो आठवता आठवता पुन्हा त्याला विसरतो अप्रतिम.. लाजवाब.. गणेशा, 3 Sep 2020 - 9:40 am | अनन्त्_यात्री धन्यवाद!
प्रतिक्रिया
30 Aug 2020 - 12:20 pm | चांदणे संदीप
अप्रतिम रचना.
सं - दी - प
30 Aug 2020 - 2:32 pm | Bhakti
रिक्ततेच्या डोहामध्ये
सदा सचैल डुंबतो
शून्य असूनही थेट
अनंताशी झोंबी घेतो
**सुंदर
31 Aug 2020 - 8:43 am | ज्ञानोबाचे पैजार
भूजल तेज समीरख रवि शशि काष्ठादिकीं असे भरला।
स्थिरचर व्यापुनि अवघा तो जगदात्मा दशांगुळे उरला - (मोरोपंत)
पैजारबुवा,
1 Sep 2020 - 5:34 pm | अनन्त्_यात्री
प्रतिसादाबद्दल धन्यवाद
1 Sep 2020 - 5:36 pm | गणेशा
शून्य असूनही थेट
अनंताशी झोंबी घेतो
आठवता आठवता
पुन्हा त्याला विसरतो
अप्रतिम.. लाजवाब..
3 Sep 2020 - 9:40 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद!