ए, बैठ ना जरासा, मीठी मीठी करेंगे बाते,
अभी तू आता नई रे, पहेले इधरीच गुजारता राते,
वो पक्या गया कल, मेरेको बहोत बेइज्जत करके,
दिखा दो सालेको औकात, दो चार फटके मारके,
समझताहै मुझको भी, बहोत देर हो गयी है,
चलना भुर्जीपाव खायेंगे, बहोतही भुख लगी है,
पैले बोतता था, रानी तूम रोज मेरे ख्वाब मे आती हो,
लेकीन आजकल तो तुम, किसी और पास ही जाते हो,
चौराहेपे खडे रहे रहे के, गुजर जाती है सारी सारी रात,
आजकल सब दूर से जाते है, कोई लगाता नही मेरेको हाथ,
मेरेको अभी बी याद है, तेरे सीने के वो घने काले बाल,
एक बार सर रखना है मुझे उनमे, चाहे फीर मत आना साल दो साल,
पैजारबुवा,
प्रतिक्रिया
8 Jul 2017 - 1:36 pm | एस
काय गंभीर विडंबन केलंय हो!
8 Jul 2017 - 2:20 pm | मुक्त विहारि
पैजार बुवांची लेखणी आम्हाला तरी निराश करत नाही.....
10 Jul 2017 - 12:32 pm | वकील साहेब
कविते इतकेच विडंबन देखील आवडले. झकास
10 Jul 2017 - 1:09 pm | पद्मावति
खरंय अगदी :(
आवडले हे वेगळे सांगायला नकोच.
10 Jul 2017 - 5:00 pm | जेनी...
पैबु काका खुप छान ...
11 Jul 2017 - 12:59 am | शार्दुल_हातोळकर
खासच हो पैजारबुवा ! :-)
12 Jul 2017 - 8:11 am | प्राची अश्विनी
सुरेख !
30 Mar 2019 - 2:07 pm | पाषाणभेद
ओ हो हो....
प्रत्यक्षाहूनी प्रतीमा उत्कट!!!
सत्य परिस्थिती.