आजवर वेळोवेळी काही लिहिण्याचा प्रयत्न केलाय.
काही लेखन प्रासंगिक आहे.
काही ठरवून झाले आहे.
तर काही सुचेल तसे मांडलेले आहे.
मिसळपाव च्या अथांग सागरात हे अर्घ्यदान करीत आहे.
आपलाच
एस.योगी.
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मेहफूझ पाता हू खुद को अंधेरो में
उजाला कही मेरा गम उजागर न कर दे ..
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टूटते हुए वादे देखकर जीते रहे जिंदगीभर
और वोह है की हर रोज इक नया वादा करते रहे..
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अश्क की जात है गिरना
और इन्सान की गिराना..
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दर्द तो मज तब देता है
दुआ भी जब काम न करे..
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खुदा से बात हुई थी कभी
उसने मान ली, लेकिन नसीब ने मात दे दी
भला ये नसीब खुदा से बडा कैसे बन गया ?
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बेवफाई का हक हम आप को अदा करते है
हमारी फितरत मे तो सिर्फ वफा लिखी है..
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क्या कहे इस तन्हाई को
आप तो यहा भी साथ हो..
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आप के प्यार को तरसनेवाले लाख होंगे
हम तो आप की बेवफाई के दिवाने है..
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अब भूल जाने की बाते करते है वो
याद रखने के वादे किये थे जिसने कभी..
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हाथो मे लिये खंजर तलाश रहे है वो जबसे
इंतजार मे उनके बैठे है हम सीना खोलकर..
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दिल की बाते न कर हमसे
जान चाहे हजार बार मांग ले..
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गुनाह हो गया जो आपसे इश्क कर बैठे
बस्स! वफा करने की सजा मत दे बैठना..
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तू समोर नसलीस की सतत तुझी जाणीव होते
समोर असलीस की मात्र स्वतःलाच विसरायला होते..
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कुछ लोग सिर्फ जिंदगी मे होते है
किस्मत मे नही....
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कई दिन बीत चुके है आपको देखे हुए
जिंदगी को शायद अब ऐसे ही गुजरना है..
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आपकी बेवफाई ही सही
कुछ तो इनाम मिले इश्क करनेका..
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चलो बेवफाई ही सही
मोहब्बतका आपने कुछ तो इनाम दिया..
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हमे आपको पाना तो नही है
मगर खोना भी नही चाहते..
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कुछ तो इनाम दे वो दिल लागानेका
कसमसे बेवफाई को भी दिल से लगा लेंगे हम..
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© एस-योगी
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सर्व हक्क लेखकाच्या स्वाधीन.
प्रथम प्रकाशनः मिसळपाव.कॉम.
अश्विन कृ.२ (दि. ऑक्टोबर २९, २०१५)
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प्रतिक्रिया
29 Oct 2015 - 5:25 pm | ज्योति अळवणी
अप्रतिम... प्रत्येक
29 Oct 2015 - 5:31 pm | अभ्या..
ओकेटोके शायरी.
बाकी असले प्रास्ताविक अन प्रकाशन दिनांक वगैरे लिहणार्या लोकांबद्दल मला लै आदर आहे.
त्यातल्या त्यात मराठी तिथी म्हणजे...वावावा. पत्रिकेत फक्त टाकतो बघा आम्ही मित्ती बित्ती लिहून. ते शु. कृ. अन व. चा घोळ अजून कळत नाही.