----------------------------------------------------------------------('माथा' फिरे कुणाचा, आक्रंदतात कोणी )
चालः काटा रुते कुणाला
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'माथा' फिरे कुणाचा, आक्रंदतात कोणी
तुज फूसही मिळावी हा राजयोग आहे !
कळे कधी कुणाला भाषा आपुली मराठी ?
हातातल्या दगडांचा मग एक मार्ग आहे !
दंगा करु पहातो होण्यास अनर्थ तेथे
नेता सदाकदाही वेठिस धरत आहे !
हे काय करतो मी, काहिच समजेना
काढुनी सर्व पाट्या मी आजमस्त आहे.
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मुळ गाणे-
काटा रुते कुणाला आक्रंदतात कोणी
मज फूलही रुतावे हा दैवयोग आहे !
सांगू कशी कुणाला कळ आतल्या जिवाची ?
चिरदाह वेदनेचा मज शाप हाच आहे !
काही करु पहातो रुजतो अनर्थ तेथे
माझे अबोलणेही विपरीत होत आहे !
हा स्नेह, वंंचना की, काहीच आकळेना
आयुष्य ओघळोनी मी रिक्तहस्त आहे !