('माथा' फिरे कुणाचा __ )

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अमोल केळकर in जे न देखे रवी...
18 Aug 2008 - 10:03 am

----------------------------------------------------------------------('माथा' फिरे कुणाचा, आक्रंदतात कोणी )
चालः काटा रुते कुणाला
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'माथा' फिरे कुणाचा, आक्रंदतात कोणी
तुज फूसही मिळावी हा राजयोग आहे !

कळे कधी कुणाला भाषा आपुली मराठी ?
हातातल्या दगडांचा मग एक मार्ग आहे !

दंगा करु पहातो होण्यास अनर्थ तेथे
नेता सदाकदाही वेठिस धरत आहे !

हे काय करतो मी, काहिच समजेना
काढुनी सर्व पाट्या मी आजमस्त आहे.
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मुळ गाणे-
काटा रुते कुणाला आक्रंदतात कोणी
मज फूलही रुतावे हा दैवयोग आहे !

सांगू कशी कुणाला कळ आतल्या जिवाची ?
चिरदाह वेदनेचा मज शाप हाच आहे !

काही करु पहातो रुजतो अनर्थ तेथे
माझे अबोलणेही विपरीत होत आहे !

हा स्नेह, वंंचना की, काहीच आकळेना
आयुष्य ओघळोनी मी रिक्तहस्त आहे !

विडंबन