उर्दू /हिंदी लिहिल्या बद्दल क्षमस्व. गझल हा विषय अजून शिकतो आहे, तेंव्हा चूक असल्या वर माफी असावी
न ठहरे किसी मंजिल पर शब होने तक
कोई क्या लगाये इल्जाम हम पर सहर होने तक
क्यों जीए और कितना बेमक्सद है अब रतीब
मालाल ये है कि हुए रुखसत जफर होने तक
खंजर भी रोया होगा दिल से गुजरते वक़्त
खैर,
दोस्त क्या वो जो ना लगा हो सीने तक
क्या सोच रहे हो, सोए रहो अब बेनाम
न लौटेगी सांस सफर के खतम होने तक
प्रतिक्रिया
9 Jul 2013 - 9:00 pm | यशोधरा
रतीब की रकीब?
मलाल
शेवटचे २ आवडले.
9 Jul 2013 - 10:29 pm | अग्निकोल्हा
.
11 Jul 2013 - 2:54 am | निनाव
न ठहरे किसी मंजिल पर शब होने तक
कोई क्या लगाये इल्जाम हम पर सहर होने तक
-- कधीही कुणा बरोबर काही मिळेल म्हणून मैत्री केली नाही , तेन्ह्वा कुणी ही मला 'स्वार्थी ' संबोधणार नाही
शब म्हण्जे रात्र म्हणजेच अंधार म्हणजेच लपलेले विचार - किंवा स्वार्थ !
क्यों जीए और कितना बेमक्सद है अब रतीब
मलाल ये है कि हुए रुखसत जफर होने तक
-- का जगलो असा नि किती , आता विचार करून उपयोग नाही , पश्चाताप एवढेच कि माझे निस्वार्थ तिला कळण्या आधीच मला जावे लागत अहे.
खंजर भी रोया होगा दिल से गुजरते वक़्त
खैर,
दोस्त क्या वो जो ना लगा हो सीने तक
-- तिने नेहमीच माझे निस्वार्थी वागणे संशयाने पाहिले , निराशा वाटलीच , परंतु हे तिने दिलेले दुख होते म्हणून ते ही स्वीकारले .
पत्थरों कि कैफियत भी क्या सदियों से
कोई है कबर कोई रब सदियों तक
-- माझे सरळ वागणे तिला दगड सारखे वाटले असावे, परंतु काही दगड पुरले जातात नि काही पुजिले जतात असाच विश्वास आहे
क्या हो माल-ए-उमर-ए-मुहब्बत इससे बेहतर
जीते रहे तमन्ना लिये वस्ल-ए-यार होने तक
-- ह्या पेक्षा अधिक चांगले निकाल माझ्या प्रेमाचे काय असणार कि मला ती कधी तरी आपले से करेल ह्या आशेत माझे जीवन व्यतीत झाले
क्यों जीए और कितना बेमक्सद है अब रतीब
मलाल ये है कि हुए रुखसत जफर होने तक
माल-ए-उमर-ए-मुहब्बत = result of love
वस्ल-ए-यार = union /meeting with beloved
आशा आहे कि तुम्हास हे आवडले असावे!
12 Jul 2013 - 12:37 am | अग्निकोल्हा
हे असं काहि वाचलं कि उर्दु शिकायची उर्मि अनावर होते. मस्त.
9 Jul 2013 - 11:24 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
लहेजा छान पकडलाय...
10 Jul 2013 - 12:54 am | धमाल मुलगा
;)
10 Jul 2013 - 9:43 am | सुधीर
बहोत खूब.
10 Jul 2013 - 10:53 am | निनाव
सर्वांचे आभार.
जफ़र = विक्टरी
मालाल = दुख
रतीब = हिशोब
*रकीब = दुश्मन
10 Jul 2013 - 11:14 am | यशोधरा
धन्यवाद!
10 Jul 2013 - 11:09 am | वेल्लाभट
वा! गजल चा मूड आवडला. छान आहे.
11 Jul 2013 - 2:34 am | निनाव
**थोडे अर्धवट राहिले म्हणून पुर्ण करीत आहे. **
पत्थरों कि कैफियत भी क्या सदियों से
कोई है कबर कोई रब सदियों तक
क्या हो माल-ए-उमर-ए-मुहब्बत इससे बेहतर
जीते रहे तमन्ना लिये वस्ल-ए-यार होने तक
क्यों जीए और कितना बेमक्सद है अब रतीब
मलाल ये है कि हुए रुखसत जफर होने तक
माल-ए-उमर-ए-मुहब्बत = result of love
वस्ल-ए-यार = union /meeting with beloved
11 Jul 2013 - 2:40 am | यशोधरा
सुर्रेख!
11 Jul 2013 - 2:57 am | निनाव
Yashodhara Ji:
aavarjoon veL kaadhoon vaachlya baddal ni kantaLa na kartaa pratisaad dilya baddal mana: purvak dhanya waad!