विश्वरूप तेज झाले | सर्व तेज येथ आले |

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सागरलहरी in जे न देखे रवी...
9 Aug 2010 - 7:04 pm

Mahalaxmi

विश्वरूप तेज झाले | सर्व तेज येथ आले |
जगज्जननीरूप बनले | महालक्ष्मी ||
रजत वर्ण प्रभावळ | त्यात शोभे मुख कमळ |
सुवर्ण मुगुट उज्ज्वळ | दिव्य रूप ||
सुंदर नथ नासिकेसी | कंठी भूषणे ल्याली तैसी |
प्रेमे पाहे भक्तासी | आदी-माया ||
सुवर्ण चरण सुंदर | मनोहर ल्याले नुपूर |
पाहोनिया भक्तिपूर | मनी दाटे ||
सर्व विश्वाची आई | रक्त वर्ण वसन घेई |
मातृ रूपे दर्शन देई | राम माझा ||
रूप मनोहर धरिले | परी गदा चक्र राखिले |
वात्सल्याने भक्त पोशिले | सावळ्याने ||
विश्व ज्याचे छत्री राहे | छत्र घेउनी उभा आहे |
ध्वज पताका सहित आहे | भक्त वत्सल ||
साजिरे ध्यान सकळ | भक्त स्मरे सर्वकाळ |
ध्यान करीता कळीकाळ | दूर राहे ||
याहो याहो सर्व लोक | पहा याचे कौतुक |
भक्त प्रेमा देई भातुक | आई बनुनी ||
राम आणि जगन्माता | एक-रूप की तत्वतां |
दोन रूपे धरिती भक्ता | तोषवाया ||
-- सागर लहरी ०९-०८-२०१०

कविता