देवा एक माझे | पुरवावे कोड |
तुझे माझे आड | नको काही ||
नको कर्म कांड | नको ब्रह्म माया |
येर झार वाया | संसाराची ||
नको बडिवार | सोवळे ओवळे |
तेणे ना आकळे | सत्य तत्त्व ||
देवा ऐसे द्यावे | मज वरदान |
नामानुसंधान | राहो सदा ||
तुझी श्याम मूर्ती | सदा राहो चित्ती |
आणि सर्व वृत्ती | तुझे पाशी ||
सदाचा सन्नीध | माझ्या देव आहे |
प्रेमे मज पाहे | ऐसे व्हावे ||
अलोट ते सुख | तुज मी स्मरावे |
अंतरी राखावे | समचरण ||
प्रेम सागराचा | पूर तुझे दारी |
सर्वत्र श्री-हरी | बाकी काय ||
-- सागर लहरी २२.७.२०१०
प्रतिक्रिया
23 Jul 2010 - 7:09 am | निरन्जन वहालेकर
छान अभन्ग ! ! ! पहाट हरी वाचनाने झाली प्रसन्न वाटले !
2 Feb 2013 - 7:51 pm | सागरलहरी
निरंजनजी , आभारी आहे
2 Feb 2013 - 7:52 pm | यशोधरा
खूप शब्ददेखणी आणि नितळ रचना आहे.
2 Feb 2013 - 8:00 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
अगदी हेच म्हणातोय.
2 Feb 2013 - 11:02 pm | अत्रुप्त आत्मा
करेक्ट... अग्गदी अस्सच म्हनताव आमी पन :-)
2 Feb 2013 - 11:51 pm | पैसा
साधी सरळ रचना.