जबरा नशीला ! ! !
इश्काची जालिम नशा, ज्या कुणाला जाहली,
मद्याची सुरई त्याने पुन्हा कधी ना पहिली !
ह्यां परी कमजोर नव्हतो, नशीले आम्ही जबरा असे,
सुरई करुनिया रीती, अधरांची ही प्राषिली ! !
निरन्जन वहालेकर
प्रतिक्रिया
19 Mar 2010 - 11:07 pm | शुचि
>>सुरई करुनिया रीती, अधरांची ही प्राषिली ! ! >>
क्या बात है!
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जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला, जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,जितना ही जो रसिक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।