अंतीच्या कळान्चे | जिवाला लागीर |
सोसेना उशीर | काही केल्या ||
भयकारी चित्र | दिसते सर्वत्र |
घरदारा पुत्र | धूसरती ||
धुमस ही कंठी | नाही येत ओठी |
राहिल्या त्या गोष्टी | सांगायच्या ||
सांगितल्याविण | समजावे मन |
उतरावे ऋण | कसे आता ||
पिन्डाला वेढीन | गुज सुचवीन |
मग घास देइन | काक मित्रा ||
- सागरलहरी
प्रतिक्रिया
29 Jan 2010 - 9:06 pm | प्राजु
भयकारी चित्र | दिसते सर्वत्र |
घरदारा पुत्र | धूसरती ||
हम्म!!
कविता छान आहे.
- प्राजक्ता
http://www.praaju.com/
29 Jan 2010 - 9:08 pm | सुधीर काळे
कविता हा माझा प्रांत नव्हे, पण ही कविता आवडली हं!
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सुधीर काळे
Parkinson's Laws
1. Work expands to occupy time available.
2. Bureucrats add subordinates, not rivals.
3. In meetings, time spent on a point is inversely proprtional to its importance!