मराठी नहीं है राज ठाकरे..!

मड्डम's picture
मड्डम in काथ्याकूट
9 Oct 2009 - 5:47 pm
गाभा: 

राज ठाकरे यांचे आंदोलन आणि मुंबई मराठी माणसाचीच या त्‍यांच्‍या भूमिकेवर हिंदी माध्‍यमातून नेहमीच टीका केली जात असते. मात्र एका हिंदी भाषकाने तर राज यांच्‍या मराठी असण्‍यावरच प्रश्‍नचिन्‍ह उपस्थित केले आहे. असाच एक लेख माझ्या वाचण्‍यात आला तो लेख मूळ लेखकाच्‍या नावासह जसाचा तसा मराठी भाषकांसाठी...

---------------
मराठी नहीं है राज ठाकरे..!

-सचिन शर्मा

दोस्तों, करण जौहर के राज ठाकरे से माफी माँगने की खबर लगभग हर अखबार और समाचार चैनल ने दी। पढ़कर बड़ा क्षोभ हुआ। क्योंकि करण पर आरोप था कि उनकी फिल्म वेकअप सिड में बंबई या बॉम्बे शब्द का 11 बार इस्तेमाल हुआ था। राज ठाकरे को यह बुरा लगा था कि उसकी मुंबई को किसी ने बंबई क्यों बोल दिया। हालांकि इस इश्यू पर अपना बयान देते हुए उनकी पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के ही एक नेता ने बंबई (बॉम्बे) शब्द का प्रयोग कई बार कर दिया लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल, ऐसा नहीं है कि मैं करण जौहर को पसंद करता हूँ, ऐसा भी नहीं है कि मैं उसकी सभी फिल्में देखता हूँ। मुझे करण जौहर या उसकी एनआरआई टाइप फिल्मों से कोई मतलब नहीं है। बल्कि मैं करण की फिल्मों के विषयों को पसंद नहीं करता, लेकिन एक हिन्दुस्तानी होने के नाते मैं इस मामले में करण जौहर के साथ खड़ा हूँ। इसका कारण साफ है कि जब आस्ट्रेलिया में दिनोंदिन भारतीयों के पिटने की खबर आती है तो मेरा खून खौल जाता है, लेकिन राज ठाकरे के बारे में सोचकर ठंडा भी हो जाता है। अरे, हम या हमारी सरकार किसी दूसरे देश को भारतीयों को पीटने से रोकने के लिए कैसे बाध्य कराएगी जब हमारे खुद के ही देश में भारतीय पिट रहे हैं, जलील हो रहे हैं और राज्य तथा केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।

साथियों, राज ठाकरे दरअसल एक बहुत बड़ा नासूर है हमारे देश के लिए, हमारे समाज के लिए। मैं उसे मराठी नहीं मानता क्योंकि जिस महाराष्ट्र ने हिन्दुत्व की अवधारणा रची, जिस महाराष्ट्र ने वीर शिवाजी और बाल गंगाधर तिलक जैसे लोग निकाले। जहाँ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा देशभक्त और क्रांतिकारी मूवमेंट शुरू हुआ उस महाराष्ट्र से कैसा जानवर निकल आया जो अपने भाईयों को ही एक दूसरे से लड़वा रहा है, झगड़वा रहा है। मुंबई हमले के समय राज ठाकरे की असलियत सबसे सामने आ गई थी जब उसके समेत उसके दल के सारे चूहे दुम दुबाकर आठ दिन तक अपने-अपने बिलों में छुपे रहे। लेकिन आश्चर्य है कि उस घटना के बाद, और उसकी असलियत सामने आने के बाद भी उसकी घातक राजनीति चल रही है। मुझे इस बात का भी आश्चर्य है कि मराठी लोग उसे कैसे सहन कर रहे हैं। मैं मराठियों को हमेशा बहुत ऊँची नजर से देखता हूँ। मैंने जिस स्कूल से पढ़ाई की है वो मराठी स्कूल था। स्कूल का पूरा स्टाफ मराठी था। हम लोग अपनी टीचर को ताई बुलाते थे। उस स्कूल में हमें बहुत अच्छे संस्कार दिए गए। इतने अच्छे कि हम सब दोस्त उन दिनों को 16 साल बाद आज तक याद करते हैं। आज हम दोस्तों में से कई विदेश में हैं, कई दूसरे देश के कोने-कोने में हैं लेकिन हम उन संस्कारों को नहीं भूले। मेरे सभी मराठी मित्रों ने अपने परिवार और देश के साथ पूरी ईमानदारी से अपना रिश्ता और जिम्मेदारी निभाई है। संगीत और कला के प्रति समझ और प्रेम मराठियों में जन्मजात होता है। वे संस्कृति प्रेमी, देशभक्त और वीर होते हैं। अपनी मातृभाषा के प्रति उनके मन में गजब का सम्मान होता है। भारत के सभी बौद्धिक मूवमेंट या तो महाराष्ट्र से शुरू हुए या बंगाल से। बंगाली लेफ्टिस्ट निकले तो मराठी राइटिस्ट लेकिन दोनों बौद्धिक लोग हैं। लेकिन पहली बार मैं एक गुंडे को मराठियों का प्रतिनिधित्व करते हुए देख रहा हूँ। यह प्रतिनिधित्व उसे किसने दिया यह मैं नहीं जानता लेकिन इतना जानता हूँ कि वो लगातार ये काम कर रहा है।

दोस्तों, मराठियों की ऐसी ओछी सोच के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता जिसमें वे सिर्फ अपने लोगों और अपने प्रदेश के बारे में सोचें लेकिन राज ठाकरे को रोकने के लिए ना तो महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार कुछ कर रही है, ना ही कोई दल कुछ कर रहा है और वहाँ की जनता भी शांत है। शिवसेना जो कह रही है वो इसलिए ज्यादा मायने नहीं रखता क्योंकि उसने भी अपनी जमीन इसी नफरत पर तैयार की है। लेकिन है यह सब बहुत घातक। हम बिहार को पिछड़ा प्रदेश कहते हैं क्योंकि वहाँ जातिवाद इतना हावी हो गया है कि वहाँ सीधे ही वर्ण व्यवस्था को निशाना बनाया जाता है। वहाँ दलितों के गैंग सवर्णों को मार डालते हैं और सवर्णों के गैंग दलितों की हत्या कर देते हैं। क्या राज ठाकरे द्वारा तैयार की गई जमीन पर भी भविष्य में ऐसा ही होगा और मराठी गैर मराठियों की हत्या कर देंगे और जब गैर मराठियों की बारी आएगी तो वे मराठियों को जिंदा नहीं छोंड़ेंगे।

आपमे से जो विद्वान हैं वो अफ्रीका के बारे में जरूर कुछ ना कुछ पढ़े होंगे। वहाँ सिविल वॉर से घिरे देशों में वही हालात हैं जो राज ठाकरे हमारे देश में करने की सोच रहा है। अफ्रीका में रेबेल्स ग्रुप ऐसे ही एक दूसरे के सिर काटते रहते हैं। क्या राज ठाकरे महाराष्ट्र को अफ्रीका के ऐसे ही किसी देश जैसा बनाना चाह रहा है। मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र कभी गैर मराठियों से खाली हो पाएगा, तो ऐसे मामले में क्या होगा..?? राज ठाकरे की शक्ल धीरे-धीरे शैतान की शक्ल जैसी होती जा रही है और उसकी गुंडों-मवालियों की सेना महाराष्ट्र का नवनिर्माण नहीं बल्कि उसका नाश करने जा रही है। राज जानता है कि उससे नफरत करने वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है लेकिन उसे फिर भी यकीन है कि मराठियों का साथ उसे मिल रहा है, शायद यह सच हो लेकिन अगर ऐसा है और राज ठाकरे अपनी इस शैतानी मुहिम में कामयाब हो गया तो पूरे देश के हर राज्य में ऐसी मुहिमें चलेंगी और देश की अस्मिता दाव पर लग जाएगी।

अब जबकि हमारे देश में नियम-कायदे और कानून की पालना में सरकारें और नेता फेल हो चुके हैं, ऐसे में हमें महाराष्ट्र के मराठी बाशिंदों से ही उम्मीद करनी होगी कि वे इस शैतानी मुहिम को खत्म करें। राज हमेशा लाइमलाइट में आने के लिए फिल्म और फिल्म से जुड़े लोगों को निशाना बनाता है। बच्चन परिवार के बाद अब बारी करण जौहर की है। महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार हमेशा की तरह चुप है क्योंकि उसे लग रहा है कि इन घटनाओं से राज का जनाधार बढ़ेगा और वो आगामी विधानसभा चुनावों में शिवसेना और भाजपा के वोट काटेगा जो कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा होगा। ऐसा इसी देश में हो सकता है कि तुच्छ चुनावों और सत्ता सुख के कारण देश को बाँट-काट-छाँट भी दो तो चलता है। यह देशद्रोही मुहिम सिर्फ और सिर्फ मराठियों की वजह से ही रुक पाएगी, जब वे राज ठाकरे का समर्थन करना बंद कर देंगे और ओछी राजनीति को एक तरफ कूड़े में फैंक देंगे। पूरा देश महाराष्ट्र के मराठियों की ओर देख रहा है। उन्हें यह साबित करना होगा कि राज ठाकरे मराठी नहीं है और मराठी संस्कारों में ऐसी देशद्रोही राजनीति नहीं आती, तभी यह विष बेल फैलने से रुकेगी अन्यथा भविष्य में हम सबको इस जहरीली बेल के फैलने की कीमत चुकानी होगी।

प्रतिक्रिया

नाम्या झंगाट's picture

9 Oct 2009 - 6:05 pm | नाम्या झंगाट

तुम्हाला हा लेखापासुन काय प्रतिसाद अपेक्षित आहे ते कळाले नाही.
तुमचे याबद्द्लचे मत (मराठी नहीं है राज ठाकरे..!) पण कळूद्या..
(आमची माती,आमची माणसं ) नाम्या झंगाट

नाम्‍यांच्‍या इच्‍छेवरून माझी प्रतिक्रिया देत आहे...

३_१४ विक्षिप्त अदिती's picture

9 Oct 2009 - 6:17 pm | ३_१४ विक्षिप्त अदिती

बोल्डपणा कमी झाल्यामुळे प्रबआ.

अदिती

सखाराम_गटणे™'s picture

9 Oct 2009 - 6:14 pm | सखाराम_गटणे™


टॅग बंद केला

लोकतंत्रने हर भारतीय को कही भी रहने का और अपना पेट पालनेके लिये पैसे कमाने का पुरा हक दिया है. ये बात सबको मंजूर होनी चाहीये इसमे कोई शक नही. आज मुंबईमे देश के हर कोनेसे हर राज्‍य के लोग रहते है और काम करते है. उनके यहां रहने मे किसी को कोई परेशानी नही है. लेकीन जब आप पेट पालने के बहाने आकर यहॉं सत्ताधीश होने का गुंडज्ञगर्दी करने का काम शुरू कर देंगे तो कोई ये क्यो सहे. संजय निरुपम से लेकर अबू आजमी तक मुंबई मे हर दुसरा उत्तर भारतीय नेता रोज खडा होकर उत्तर भारतीयोंको तलवार बॉंटने की बात करता है. मुंबई मे टॅक्सी, रिक्षा चलानेवाले, दूध और सब्‍जी बेचनेवाले 'भैय्या' वहां के मराठी लोगोंकोही जब धमकाने लगे तो कोई कैसे सहेगा.

मुंबई मे आज गुजराती, बंगाली, पारसी, साऊथ इंडियन और पंजाबी भी रहते है. उनके मुंबई मे रहने के बारे मे कभी किसीने कुछ न ही कहा. क्योंकी उन्‍होने सिर्फ अपने काम से काम रखा. और मुंबई को और यहा के मराठी लोगोंको अपना माना. तो मराठीयोंने भी उन्‍हे पुरा प्‍यार दिया. वो आज जुबॉन से शायद ना हो लेकीन दिल से मराठी है. और उन्‍हे अपने आपको मराठी कहलाने मे गर्व होता है. ये बात सिर्फ मुंबई के लिये नही तो महाराष्‍ट्र छोड के दुसरे राज्योंमे रहने वाले मराठीयों को भी लागू होती है.
जो जहॉं रहता है. वहॉं की संस्‍कृती और वहॉं के लोगों के साथ वो घुलमिल कर रहेगा तो उसे हर कोई अपना मानेगा.

लेकीन जबसे ये बिहारी और उत्तर प्रदेश के गुंडे यहा आये है. मराठी लोगोंका जिना मुश्‍कील हो गया है. मुंबई मे गॅंग वॉर की, चोरी की, और लुट की घटनाओं के आकडे अगर आप देखेंगे तो यहॉं सबसे जादा लोग उत्तर प्रदेश और बिहार के मिलेंगे. वहा से तडीपार किये गये खून करके भागे हुये और भी बहुत सारे गुनहगार मुंबई मे आकर छुपते है. ये मुंबई को 'बिहार' बनायेंगे ये मराठी कैसे सह पायेगा.

महाराष्‍ट्र मे आज रोजगार के अवसर ज्यादा है. मुंबई बडा और डेव्‍हलप्ड शहर है इसमे मराठी लोगोंकी क्या गलती. बिहार और उत्तर प्रदेश के नेताओंने 60 साल क्या किया. वहॉं रोजगार के अवसर क्यों नही मिल रहे. वहॉं तरक्की क्यों नही हो रही. ये उनसे कोई नही पुछता. वहॉं के राजनेताओंने सिर्फ गरीबोंका खून चुसने का काम किया है. उनके राज्योंको भूख, गोली और गरीबी के सिवा कुछ नही दिया. इसमे मुंबई के मराठीयोंकी क्या गलती. देश के सबसे ज्यादा पंतप्रधान उत्तर भारत से है फिर भी वहॉं तरक्की क्यो नही हुई. सालोंसे इस देश मे परिवारवाद चला रहे गांधी-नेहरू घराने के लोग उन्‍ही राज्‍योंसे चुन कर आते है न. तो उन्‍होंने अब तक वहॉं कुछ भी क्यों नही किया. इसके लिये क्या मराठी जिम्मेदार है.

वहॉं के नेताओं को अपनी मूर्तीयॉं लगवाने और पार्कोके निर्माण मे करोडों की राशी खर्च करनेमे ही धन्‍यता लगती है. उन्‍हे क्यों नही पुछा जाता, की जिस दलित उध्‍दार के नाम पर गरीबोंको झांसा देकर उन्‍होने सत्ता हासिल की वो कहॉं है. सोनिया गांधी के रायबरेलीमे रेल कोच फॅक्टरी के लिये मायावतीने घिनौनी राजनिती के तहत विरोध क्यों किया इस बारे मे उसे क्यों नही पुछा जाता. दुनियाभर मे जहॉं तरक्की चल रही है वहॉं आज भी बंधुआ मजदूरी और भूखमरी क्यो चल रही है. इस बारे मे क्यों नही पुछा जाता.

जबसे लालू के हात से रेल मंत्रालय गया है. आये दिन ट्रेन की बोगियोंमे आग जनी की घटनाये हो रही है. वो क्यो हो रही है और कौन करवा रहा है क्या हम और आप नही जानते. इसके बारे मे उन्‍हे कौन पुछेगा. एक जमाने मे जहॉं तक्षशीला और नालंदा जैसे विश्‍वविद्यालयोंने दुनिया को ग्यान का पाठ पढाया वहा पढाई बिचमेही छोडकर 8-10 साल के बच्‍चोंको काम पर क्यों लगा दिया जाता है. इसके लिये जिम्मेदार कौन ये क्यों नही पुछा जाता. क्या इन सब चिजों के लिये मराठी जिम्मेदार है.

वहॉं के लोंगोंको पेट पालने के लिये दर-दर की ठोकरे खानी पडती है. इस बारे मे हमे खेद है. निश्चितही ये हमारे देश के लिये शर्म की बात है. उनका मुंबईमे आना और यहॉं आकर पेट पालने के लिये काम करने मे हमे कोई ऐतराज नही. लेकीन यहॉं आकर अन्‍य राज्योंके लोगोंकी तरह सादगी और शालीनतासे रहे तो हमे कोई आपत्ती नही. आये दिन लडकीयों को छेडना. गुंडागर्दी करना, रिक्षा और टॅक्सी चालकोंकी गुंडागर्दी हम कब तक सहेंगे. इन सब चीजोंमे इमेज तो मराठीयोंकीही खराब होनी है.

रही बात राज ठाकरे की तो उन्‍होंने जो भी किया सालोंसे मराठीयों के मनमे दबी बात बाहर निकालने काम किया है. मै नही समझता कोई गलत बात है. आप को मराठी समझती है या नही मै नही जानता अगर समझती हो तो राज ठाकरे के विचारोंको एकबार समझने की कोशिश किजीये. यों छत्रपती शिवाजी महाराज और बाल गंगाधर तिलक का नाम लेकर मानवता की दुहाई देने के अलावा अगर आप तथ्‍थोंका समझेंगे तो ज्यादा अच्‍छा होगा. और उत्तर प्रदेश और बिहारींयोंको केवल महाराष्‍ट्र मे ही नही. कर्नाटक, गुजरात और आसाम मे भी विरोध होता है. वहॉं क्यो आप कुछ बोलते नही.

राज ठाकरेने समस्‍त उत्तर भारतीयोंके खिलाफ नही अपितु गुंडागर्दी करनेवाले उत्तर प्रदेश और बिहारीयोंके खिलाफ आंदोलन चलाया है. हिंदी माध्‍यमों की अधुरी सोच ने उसे उत्तर भारत और हिंदी के खिलाफ आंदोलन का नाम दिया.
रही बात खबरोंकी तो आंदोलन को हिंदी और उत्तर भारत के खिलाफ होने का नाम देने के बाद निरपेक्ष खबरोंकी अपेक्षा करनाही बेकार है.
------------

मराठी भाषकाची हिंदी

प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे's picture

9 Oct 2009 - 6:23 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे

स.न.वि.वि.
आपला प्रतिसाद पटण्यासारखा आहे. फक्त प्रतिसाद मराठी भाषेत लिहिला तर बरं होईल असे वाटते.

-दिलीप बिरुटे

तो वोच उधर सचिन शर्मा के ब्लॉग पे डालनेका. बात खतम. हय क्या हौर नय क्या!

३_१४ विक्षिप्त अदिती's picture

9 Oct 2009 - 6:22 pm | ३_१४ विक्षिप्त अदिती

क्या बोल्या तू भी, येकदम भारीच हं!!

पर तसं बोले तो हम सगळेच लोक आफ्रीकन है।

अदिती

नाम्या झंगाट's picture

9 Oct 2009 - 6:32 pm | नाम्या झंगाट

मला मड्ड्मच्या प्रतिसाद पाहून (वाचून नाही) फ्क्त कॉपि - पेस्ट ची दाट शंका का यावी?????

(आमची माणसं, आमचा महाराष्‍ट्र) नाम्या झंगाट

मड्डम's picture

10 Oct 2009 - 12:34 pm | मड्डम

बरोबर हाय तुमचं म्हणणं. मराठी माणूस हिंदी लिहू शकतो हे आपण कधी पचवू शकतच नाही ना. असो वर दिलेली प्रतिक्रिया यापूर्वी मीच सचिन शर्माच्‍या ब्‍लॉगवर टाकली आहे. केवळ विषय मि.पा.वर यावा या अपेक्षेमुळे पुन्‍हा टाकली.

दशानन's picture

10 Oct 2009 - 3:57 pm | दशानन

असेच म्हणतो...

>>मराठी माणूस हिंदी लिहू शकतो हे आपण कधी पचवू शकतच नाही ना.

मलाच नाही पचत ;)

***
"हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले । "

राज दरबार.....

३_१४ विक्षिप्त अदिती's picture

11 Oct 2009 - 9:30 pm | ३_१४ विक्षिप्त अदिती

मला मड्ड्मच्या प्रतिसाद पाहून (वाचून नाही) फ्क्त कॉपि - पेस्ट ची दाट शंका का यावी?????

नुस्तं वाटून काय फायदा हो झंगाट ... पुरावा द्या आणि मग बोला ना ...

(zzz zzz) अदिती

अमोल केळकर's picture

10 Oct 2009 - 4:51 pm | अमोल केळकर

वरील हिंदी लेख कळला नाही.
मराठीत भाषांतर करुन पुनःइथे दिला तर प्रतिक्रिया देता येईल

(मराठी ) अमोल
--------------------------------------------------
भविष्याच्या अंतरंगात डोकावण्यासाठी इथे टिचकी मारा

पिवळा डांबिस's picture

10 Oct 2009 - 9:20 pm | पिवळा डांबिस

मुझे करण जौहर या उसकी एनआरआई टाइप फिल्मों से कोई मतलब नहीं है।
यावरून इतकंच कळलं की मराठी माणसांप्रमाणे भय्येसुद्धा काही कारण नसतांना उगीचच त्यांच्या अनिवासींचा उद्धार करतात!!!!
:)
उगाच त्यांना "परप्रांतिय" म्हणून हिणवतो आपण!!!!
शेवटी घरोघरी मातीच्याच चुली!!!!
:)

शाहरुख's picture

10 Oct 2009 - 11:19 pm | शाहरुख

या भय्यानं अनिवासींचा उद्धार केलेला नसून करण जौहरच्या एनआरआई टाईप चित्रपटांचा उद्धार केलाय..(तसा तर त्या चित्रपटांचाही नाही केलेला..फक्त स्वतःला आवडत नसल्याचं सांगितलंय)

अवांतर होऊ नये म्हणून सांगणं भाग पडलं :-D